समस्या का समाधान खैरात नहीं है,जनोन्मुख नीति है। करोड़ों दिहाड़ी मजदूर कहां जाएंगे? यातायात बंद हो गया, काम से बेदखल मजदूर, रेड़ी-पटरी वाला अपने गांव कैसे जाए? रोज कुंवा खोद पानी पीने वाले रिक्शा, बैटरी रिक्शा वाला कहां जाए? मध्य वर्ग तो 21दिन का इंतजाम कर लेगा, गरीब क्या करे? लॉक डाउन की घोषणा करते समय सरकार को इनका भी इंतजाम करना चाहिए था।
इसे अपने पर न लें, मिडिल क्लास क्रांतिकारी हालात में पाला बदलता है लेकिन उसके अलावा वह एक ऐसा क्लास होता है जो देश की किसी समस्या के लिए सरकार से सवाल पूछने के बजाय पब्लिक को ही दोषी ठहराता है जिसमें वो ख़ुद भी शामिल होता है या दो चार की संख्या में सरकार से सवाल पूछने वाले लोगों को गाली देने लगता है! देश के करोड़ों ग़रीबों के लिए इनकी संवेदना इतनी निर्मम हो चुकी है कि वो उनको पुलिस द्वारा पिटते देख खुश होता है, ख़ुद घर में राशन लाकर भर लिया है लेकिन जिनको रोज़ कमाना, रोज़ ख़रीदना होता है उनके लिए कुछ कह रहे हैं कि जो बाहर दिखे उसे गोली मार दो, कुछ उनकी पुलिस से ढंग से सुताई करवाना चाहते हैं! ... कोरोना का गुस्सा ये सरकार द्वारा शुरू में की गयी लापरवाही या अब की जा रही बदइन्तज़ामी पर सवाल करने के बजाय सवाल करने वालों पर उतारते हैं।
मैं भी मिडिल क्लास ही हूं, 4 दिन में आज घर से गाड़ी में निकला सोसाइटी के अंदर सफल की सब्जी की दुकान में लाइन में लगने के लिए .. ... लेकिन
सरकार से ज़्यादा क्रूर तो ये मिडिल क्लास हो चला है जो सवाल करने वालों की मॉब लिंचिंग तक कर गुजरने तक असंवेदनशील हो चुका है!
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