Wednesday, March 25, 2020

लल्ला पुराण 276 (ईश्वर)


Arvind Rai मेरा भी सैद्धांतिक रूप से कई (परदादा के दादा की पीढ़ी) पीढ़ियों से संयुक्त परिवार है, मेरे दादा उस लाइन में अकेले थे, पिता जी दो भाई हम सगे-चचेकरे मिलाकर बहुत भाई-बहन, लेकिन एक चचेरे भाई को छोड़कर सभी शहरों में पलायन कर चुके हैं। आपकी अंतिम बात से सहमत हूं कि आस्था मनोबल बढ़ाती है. यही बात मार्क्स भी कहते हैं। धर्म हृदयविहीन दुनिया का हृदय है, मजलूम की आह है। 'जिसका कोई नहीं, उसका खुदा है यारों'। लेकिन जो जान गए हैं खुदा नहीं होता उन्हें मनोबल बढ़ाने के लिए आत्मबल का ही सहारा है, जिन्हें आत्मबल का एहसास हो जाता है उन्हें खुदा के सहारे की जरूरत नहीं होती, मिलता भी नहीं, मिल ही नहीं सकता।

किसी के माध्यम से करे, सही क्यों नहीं करता? कोरोनो वायरस क्यों फैलाया जिससे तमाम देशों में लॉक डाउन करना पड़ा और जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया? पहले से ही मंदी की मार झेलती अर्थ व्यवस्था को पीछे धकेल दिया? महाभारत इतिहास नहीं पौराणिक महाकाव्य है जिसमें कृष्ण युद्ध का उपदेश देते हैं। युद्ध के विनाश के बाद कुछ नहीं बचता, कृष्ण के परिजन आपस में मर-कट जाते हैं तथा कृष्ण खुद एक बहेलिए के हाथ मारे जाते हैं।

Rupesh Shukla कर्म-करण (cause-effect) का समीकरण वैज्ञानिक है, इसमें ईश्वरका कोई योगदान नहीं है। सभी समीक्षाओं की शुरुआत धर्म की समीक्षा से शुरू होती है और धर्म की आलोचना की शुरुआत िस बात से कि ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया, इसीलिए उसका स्वरूप और चरित्र, जैसा ऊपर कहा, देश-काल के हिसाब से बदलता रहा है। फिलहाल पैगंबर मुहम्मद द्वारा खोजा गया ईश्वर नवीनतम है, उसके बाद राम-रहीम जैसे बहुतों ने खुद को खुदा घोषित किया लेकिन सार्वभौमिक मान्यता नहीं मिली। हमारे देवी-देवताओं में, मेरी जानकारी में, संतोषी माता नवीनतम हैं जिनकी उत्पत्ति, 1980 के आस-पास इसी नाम की एक फिल्म से हुई।

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