मैं तो लगातार सीखता रहता हूं सिखाता नहीं, इंसान बनने का आग्रह करता हूं, बस। जिसे न बनना हो न बने। किसी के लिए अशलील भाषा का प्रयोग नहीं करता, न निजी आक्षेप करता हूं. पूंछ लेता हूं, भाषा की तमीज कहां से सीखा? यदि भाषा की तमीज ठीक हैतो बताने में हर्ज नहीं होना चाहिए। लेकिन अंधभक्त दिमाग के इस्तेमाल का कष्ट न कर मेरा नाम देखते ही वाम वाम अभुआने लगते हैं और विषयांतर से स्वस्थ विमर्श की संभावनाएं विकृत करते हैं। मैं अभद्र भाषा में निजी आक्षेप करने वालों को अपनी भाषा भ्रष्ट होने से बचाने के लिए, मजबूरन ब्लॉक करता हूं।
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