Tuesday, March 31, 2020

लल्ला पुराण 286 (सांप्रदायिकता)

एक ग्रुप में सांप्रदायिकता की एक पोस्ट पर एक कमेंट:

हम जब संघ में थे तो इसी तरह की (मुसलमानों और कम्युनिस्टों को खलनायक चित्रित करने वाली) नफरती अफवाहों का अन्वेषण करते थे। इस ग्रुप की मुखर बहुसंख्या सांप्रदायिकता के विष से ओत-प्रोत सवर्ण पुरुषों की है। जो बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक का और देश पर गायब हो चुके वामपंथ के खतरे का भजन गाते रहते हैं। बहुसंख्यक पर अल्प संख्यक के खतरे का हव्वा खड़ा करना फासीवादी प्रवृत्ति है। आप शिक्षक हैं जानते हैं कि व्यक्तित्व का निर्माण समाजीकरण से होता है जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना से नहीं। यदि दो सगे भाई एक जैसे नहीं होते तो करोड़ों मुसलमानों, लाखों जाटों का एक समरस समूह कहां से होगा? यह बात अंधभक्ति में हिंदू-मुसलमान रोग से पीड़ित अपने बड़े भाई से मैंने कहा था। ईमानदारी से बताइए यदि आप जहां पैदा हुए वहां से 200-400 मीटर उत्तर या पूरब पैदा होकर द्विवेदी की बजाय यादव या अंसारी होते और इसी शिक्षा-दीक्षा के बाद आप जो हैं वही होते या अलग? हमारे समय इवि में बहुमत सवर्णों का था तो जातीय गिरोहबाजी सवर्ण-गैरसवर्ण नहीं, छात्रों में परस्परविरोधी ब्राह्मण और राजपूत गिरोह थे तथा शिक्षकों में ब्राह्मण और कायस्थ गिरोह थे। बाहुबलियों में क्षेत्रवार गिरोह थे -- बांदा गिरोह और बलिया गिरोह। अब गिरोहबाजी राजपूत-यादव या ऐसे ही कुछ होगी? कुछ दिन पहले तक दिवि में जाट और बिहारी लॉबी के गिरोह थे। जब मैं वार्डन था तो मैंने अपने हॉस्टल में यह गिरोहबाजी खत्म कर दिया था जिसका असर विवि में भी पड़ा।

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