Friday, March 6, 2020

लल्ला पुराण 264 (दिल्ली दंगे)

आप के दिमाग में सांप्रदायिक नफरत का इतना जबहर भरा है कि आपकी बर्बर अमानवीय संवेदना पर आश्चर्य नहीं होता, हिंदू को मार कर पोस्ट करें। यह दंगा नहींथा एकतरफा प्रायोजित जनसंहार था, कभी इलाकेमें जाकर देखिए। आप नख-शिख सांप्रदायिक पहले से हैं आपकोऔर सांप्रदायिक कौन बना सकता है? यह जनसत्ता की खबर है जो न मुस्लिम है न वामपंथी। हम हमेशा हर दरिंदगी के खिलाफ लिखते हैं, संघी-मुसंघी दोनों दरिंदे मौसेरे हैं। हिंदू-मुसलमान से ऊपर उठकर इंसान बन कर देखिएतो आपको हमारी बात एकतरफा नहीं लगेगी। जो हम नहीं लिखते उसे आप लिखें। जो लिखा हो उस पर भी कभी दिमाग का इस्तेमाल करें, वही मनुष्य को पशुकुल सेअलग करता है। दफनाने की बजाय एक 85 साल की बुढ़िया को जलाकर उसे मोक्ष दोकर जो उपकार आपने मानवता पर किया है उसे इतिहास याद रखेगा। अब से आपके भजन का संज्ञान लेना बंद।

Arvind Rai पढ़ाए तो नहीं हैं, सोहबत का कुछ असर पड़ता होगा। हमनेतो अपनी बेटियों को भी नहीं पढ़ाया, 2012 के बलात्कार विरोधी प्रदर्शन में नारे लगाते उसकी तस्वीर हिंदुस्तान टाइम्स समेत कई अखबारों ने छापा था, मैंने शेयर भी किया था। विजय बाजपेयी से शाहीन बाग में मिलकर ज्यादा खुशी हुई कि डीपीएस जैसे स्कूलोंके लड़के भी धरना-प्रदर्शम में जाते हैं। इलाहाबाद की जो लड़की (महिला) मिली उसे तो कक्षा 9-10 में पढ़ाया था, वामपंथ के बारे में भी खास नहीं जानता था समाजीकरण से प्राप्त कही-सुनी बातों के अलावा।

Uday Bhan Dwivedi मेरे सारे छात्र प्रदर्शनकारी तो नहीं है, ये दोनों तो मेरे छात्र जीवन के मेरे गणित के छात्र थे। लेकिन शिक्षक चाहे तो छात्रों पर अच्छी छाप छोड़ सकता है, प्रवचन से नहीं, व्यवहार से। मैं रोब से कहता हूं, my students shall be different among their likes and exceptions only prove the rule. मेरा एक स्टूडेंट यूपी कैडर का आईपीएस है, आजकल नोएडामें पोस्टेड है, उसके पिता राजगीर हैं। कई उप्र न्यायिक और प्रशासनिक एवं अन्य राज्य सेवाओं में हैं।

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