Raj K Mishra वास्तविक बौद्धिकता मनुष्य की मनुजता हरती नहीं बल्कि उसे अंधविश्वास से मुक्त कर विवेकसम्म्त बनाती है। जीवन की सकारात्मक सार्थकता के लिए तर्क और भावना की जगह विवेक और अंतरात्मा का सामंजस्य और संयोग बेहतर अभिव्यक्ति होगी। मध्यकाल सभी सभ्यताओं का अंधकारयुग रहा है। भारत में परिस्थिति-विशिष्ट नवजागरण यूरोप से पहले कबीर के साथ शुरू हुआ जो ऐतिहासिक कारणों से अपनी तार्किर परिणति तक नहीं पहुंच सका।यहां यूरोप में पूंजीवाद के विकास के साथ शुरू प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) आंदोलन के समानांतर किसी आंदोलन की संभावनाएं औपनिवेशिक हस्तक्षेप के चलते चरितार्थ न हो सकीं। यहां पूंजीवाद के विकास साथ भी यही बात लागू होती है। पूंजीवाद के स्वतंत्र विकास की परिस्थितियां भी औपनिवेशिक हस्तक्षेप से कुंद हो गयीं तथा यहां औपनिवेशिक पूंजीवाद विकसित हुआ। आज भी भारत का पूंजीवाद (और राष्ट्रवाद) साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी का अधीनस्थ है। उदारवादी, औपनिवेशिक साम्राज्यवाद और नवउदारवादी भूमंडलीय साम्राज्यवाद में यह अंतर है कि अब किसी लॉर्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है, सारे सिराजुद्दौला मीर जाफर बन गए हैं।
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