हा हा। बुद्ध को अपने गणराज्य से निष्कासित कर दिया गया तो नौकरी कहां मिलती। छोटे लोग सत्ता की ताकत से बड़े लोगों को निष्कासित कर हीरो बनते हैं। डा. कार्ल मार्क्स को नौकरी तो छोड़िए, उनकी कलम का आतंक इतना कि उनका जर्मनी में अस्तित्व प्रूसियन साम्राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया और वे भागकर पेरिस चले गए वहां भी एक और कलम चलाने वाले जर्मन, एंगेल्स से मिलकर 'फ्रंसोइस-ड्वाशि यार बुक' निकाल कर कलम से नई नई बातें सबको बताते रहे, वैसे इनके पाठक बहुत सीमित थे। लेकिन वहां भी उनका रहना खतरनाक माना गया। भागकर बेल्जियम गए वहां से भी जाना पड़ा, अंततः बाकी जिंदगी लंदन में एंगेल्स के अनुदान और कलम की मजदूरी से काट दी। लेकिन कलम तो कहीं रहेगा चलता ही रहेगा। उनके कलम का कमाल यह कि एंगेल्स की उनकी अंत्येष्टि में की गयी भविष्यवाणी चरितार्थ कर दिया। पूरी दुनिया मार्क्स के पक्ष और विपक्ष में बंट गयी। लोग मार्क्सवाद का मर्शिया पढ़ते हैं लेकिन बात कोई भी हो मार्क्स-मार्क्स अभुआने लगते हैं। सत्ता का भय होता है, विचारों का आतंक.
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