Monday, December 25, 2017

बेतरतीब - क (अटलबिहारी)

मैंने अटलजी के 2 भाषण सुने। पहला 1969 में दूसरा 1999 में। पहला जब 'युवा हृदय-सम्राट' थे दूसरा जब वे प्रधानमंत्री थे। 1969 में मैं दसवीं में टीडी कॉलेज जौनपुर में पढ़ता था और हॉस्टल के कुछ सीनियरों के साथ 10-20 बार शाखा भी जा चुका था,और अफवाहजन्य इतिहासबोध के कुछ बौद्धिक भी सुन चुका था। स्कर्ट टाइप का हाफपैंट मुझे बेहूदा लगता था और ड्रिल करने से चिढ़ थी, इसलिए स्वयंसेवक होते-होते बच गया। भूमिका यहीं खत्म करता हूं नहीं तो कहानी रह जाएगी। कई दिनों से रिक्शों पर भोंपू से प्रचार हो रहा था, 'युवाहृदय सम्राट' की सभा का। फूल-मालाओं और नोटों के 100 स्वागत द्वार बने थे। जौनपुर का राजा यादवेंद्र दत्त दूबे यमयलए था। वैसे तो यूपी-बिहार में कोई राज-घराने ही नहीं थे। तनकी भर बड़ियार जमींदार अपने को राजा रहते थे। 1967 में पहली बार जौनपुर से 5 यमयलए जनसंघ के जीते थे। खैर 14 साल के ब्राह्मण बालक (जनेऊ तोड़ चुका था, संस्कार-सोच इतनी जल्दी नहीं टूटते) को लोगों के हास्यबोध पर आश्चर्य हुआ। भीषण सूखा और तबाही मची थी, अमरीका से गेहूं-बजरा मागाया गया था। जिस क्रूर मस्खरी पर सबसे ज्यादा तालियां बजीं वह मुझे शब्दशः याद है। "आपके यहां शूखा पड़ गया..ऐ..। हुआ यों कि ....इंद्रजी और इंदिरा में लड़ाई हो गयी..। इंद्रजी जीत गएएए.. इंदिरा जी हार गईं.. सूखा पड़ गियाआआआ"। 1999 की भंडैती की कहानी फिर कभी।

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