उपाध्याय पूर्वी उप्र में निम्नकोटि के ब्राह्मण माने जाते हैं। मैं बहुत छोटा था मेरी एक बुआ की शादी एक उपाध्याय सो हो गई, फूफा जी बहुत ही अच्छे इंसान थे, एक इंटर कॉलेज में शिक्षक। बाबा (दादाजी) के मुंह पर तो कोई कुछ नहीं कहता था, लेकिन पीठ पीछे सब कहते थे कि फलाने पंडितजी की क्या मजबूरी थी कि बेटी की शादी उपाध्याय में कर दिए! हिंदू जाति व्यवस्था पिरामिडनुमा है, सबसे नीचे वाले को छोड़कर हर किसी को अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल जाता है। मेरी पत्नी मजाक में ही सही,मुझे कभी कभी याद दिलाती रहती हैं कि हम उनसे छोटे ब्राह्मण हैं। मैं कहता हूं कि मैं तो ब्राह्मण ही नहीं रहा, इंसान बन गया हूं, छोटे-बड़े की बात ही नहीं। हिंदू जातिव्यवस्था की श्रेणीबद्धता को पूंजीवाद ने आर्थिक स्वरूप दे दिया। हिंदू जातिव्यवस्था की ही तर्ज पर इसमें भी पिरामिड के शीर्ष से तह तक (सीईओ से दिहाड़ी मजदूर तक; प्रोफेसर से लेकर 12000-14000 में 12 घंटे ड्यूटी करने वाले ठेके के सिक्योरिटी गॉर्ड तक;....), हर किसी को, नीचे वालों में भी सबसे नीचे वाले को छोड़कर अपने से नीचे देखने के लिए कोई-न-कोई मिल जाता है। हमारी शिक्षा आजीविका का हुनर सिखाती है ज्ञान नहीं कि उच्चतम शिक्षा के बाद भी जन्म की (जीववैज्ञानिक दुर्घना की) अस्मिता से ऊपर उठने की न्यूनतम दूरी भी तय कर सकें। यह प्रयास स्वयं करना पड़ता है। बाकी ई रतनवा त जन्मजात खुरापाती लगता है, जब देखो शरीफ लोगों को छेड़ता रहता है, इसको तो किसी दिन शरीफ दलित ही पीटेंगे। मुझे भी खुलेआम पंडित जी, पंडित जी कहता रहता है, नजर बचाकर मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लूंगा। Ratan Lal इस कमेंट की अंतिम 2 लाइनें पढ़ना तुम्हारे लिए वर्जित है।
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