Friday, December 22, 2017

बेतरतीब 34 (तलाश-ए-माश 3)

मैंने विवि-कॉलेजों में 14 साल इंटरविव दिए। 1986 में इलहाहाबाद विवि में मेरा इंटरविव 1 घंटा 18 मिनट चला (बाहर इंतजार करते लोग घड़ी देख रहे थे), कुलपति काफी रुचि ले रहे थे। 6 पद थे। मैं सोचने लगा था कि गंगापार नये बस रहे झूसी में घर लूं या गंगा इसपार तेलियरगंज में? वह नौबत नहीं आई। 1987 में जामिया में लंबा इंटरविव चला, 3 पद थे। उसके एक एक्सपर्ट से किसी सेमिनार में मुलाकात हुई, उन्होंने कहा कि वे और कुलपति मेरे पेपर और इंटरविव से काफी प्रभावित हुए थे और तमामतर के बावजूद वे मेरा नाम पैनल में चौथे स्थान पर रखवाने में सफल रहे। 3 पद थे तो 4 पर रखते या 14 पर क्या फर्क पड़ता? मुझसे कोई कहता है कि मुझे देर से नौकरी मिली, मैं कहता हूं, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी? एक 'क्रांतिकारी' प्रोफेसर को मैंने एक बार कहा था कि वे रैकेटियर न होते तो बड़े आदमी बन सकते थे ।

No comments:

Post a Comment