लिख रहा था राष्ट्रवाद पर एक लेख
आ गयी कोबाड गांधी की याद
पढ़ते हुए जिसके लेख
अमानवीय वर्ग उत्पीड़न
और मानव-मुक्ति की जरूरत पर
हो जाता हूं भावातिरेक
यह आदमी जो है इतना समझदार
कर सकता था जो विचारों का व्यापार
बना सकता था सुख-सुविधाओं काअपना संसार
होता है तो होता रहे जन-गण-मन पर अत्याचार
लेकिन उसने स्व को सर्व में मिला दिया
जन-गण के दुख-दर्द को अपना बना लिया
नाइंसाफी खत्म करने का बीड़ा उठा लिया
और बना लिया
कलम को जंग-ए-आजादी का हथियार
हुक्मरानों में मच गया हाहाकार
कहा इसे राष्ट्रवाद पर प्रहार
देश की सेना-पुलिस इनके पीछे लगा दिया
और एक दिन रंग गए सुर्खियों से सारे अखबार
कर लिया गया खतरनाक कोबाड गांधी गिरफ्तार
फैला रहा था जो छुप-छुप कर जनवादी विचार
कर रहा था शहरों में माओवाद का प्रचार-प्रसार
है सालों से इस-उस जेल में गिरफ्तार
कर रहे हैं तबसे
कभी इस तो कभी उस सूबे में जेलविहार
ये तो सरकार के लिए द्वापर के कृष्ण से लगते हैं
एक ही समय कई सूबों में राष्ट्रद्रोह कर रहे होते हैं
बरी करती है एक मामले में तेलंगाना की अदालत
बाहर झारखंड पुलिस इंतजार में खड़ी मिलती है
लगाया इस बुर्ग ने बुरी सेहत की गुहार
मौत की उनके होगी सरकार जिम्मेदार
यह जेल से भी लिखता है
बंद दीवारों में भी इसका कलम
'अर्थ ही मूल है' के नारे लिखता है
राष्ट्र ही नहीं
भूमंडल के अर्थशास्त्र की चीड़फाड़ करता है
राष्ट्रवाद पर जहर उगलता है
आवाम के नाम इंकिलाबी पैगाम देता है
राष्ट्र मौत की जिम्मेदारी से इंकार कर देगा
लेकिन कोबाड गांधी तो बन चुके अब विचार
जो कभी मरता नहीं फैलता ही है
ऐंतोनियो ग्राम्सी को भी तो ऐसे ही मारा था
जिसने फासीवाद को जेल से ललकारा था
..... अधूरी
(ईमि: 20.12.2017)
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