सही कह रहे हैं आस्ट्रलिया में पढ़ाई कर लेने से सद्बुद्धि नहीं आ जाती नहीं तो अखिलेश हिंदुत्व की बात न करता। पढ़े-लिखे जाहिलों का प्रतिशत अपढ़ जाहिलों से अधिक है। जिस तरह बाभन से इंसान बनना मुश्किल है उसी तरह अहिर से इंसान बनना भी मुश्किल है। इसके बाप जिससे इसे मुख्यमंत्रित्व विरासत में मिली, पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही पहला काम किया था, डालमिया की सेवा में डालमिया सीमेंट के मजदूरों के शांतिपूर्ण आंदोलन को बर्बरता से कुचलने का। मायावती ने काश अंबेडकर पढ़ा होता और नवब्राह्मणवादी न बनती तो 2012 में उसे हटाना मुश्किल होता। साथी ये सब अब अप्रासंगिक हो गए हैं, जयभीम-लाल सलाम नारे को सैद्धांतिक रूप देकर एक नई ताकत की जरूरत है, आप नवजवानों को पहल करनी चाहिए। माया-मुलायम-लालू के पास अंतरदृष्टि होती तो इतिहास अलग होता।
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