इलाहाबाद विवि में हम लोगों के समय कहा जाता था कि हिंदू ह़ॉस्टल में असलहों का जखीरा होता था। हमने देखा नहीं लेकिन सुना था कि यसयसयल के एक बहुत बड़े भइया की गाय लॉन में बंधती थी और हॉस्टल का एक 'ब्लॉक सर्वेंट' (क्या सामंती मिजाज!) उनकी गाय की देख-रेख में रहता था। 1974 में बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद विवि में बहुगुणा विरोधियों का ध्यान रखने और उनकी सभा को सफल बनाने के लिए पेरोल पर छूटे थे। बहुगुणा की मीटिंग के दिन छात्रसंघ ने काला झंडा दिखाकर विरोध प्रदर्शन का प्रस्ताव रखा तो कुएं के मंच से चल रही आम सभा के दौरान अध्यक्ष ब्रजेश कुमार, दगदीश दीक्षित और कुछ अन्य छात्र नेताओं का पिस्तौल के बल पर अपहरण करके यमुना में उन्हें नौकाविहार कराया जाता रहा। कुछ लोग पहुंचे और श्रोताओं में मिल गए और भाषण शुरू होते ही काले झंडे निकाल कर मुर्दाबाद लगाने लगे। 'जनता' भी श्रोताओं में मिली थी, 'जनता' के पास लाठियां भी थी, इतने लोकप्रिय नेता की सभा में गड़बड़ी के लिए 'जनता' ने उनकी कुटाई कर दी। खैर उस दिन और उसके बाद वाले दिन विरोध प्रदर्शन के नाम पर खुली लंपटता, लूट-पाट, आगजनी के उत्पाती तांडव, लाठीचार्ज और प्रायोजित गिरफ्तारियों के विस्तार में जाने की गुंजाइश और जरूरत नहीं है, कहीं लिखा था कभी, खोजकर शेयर करूंगा। मैंने जब लकी स्वीटमार्ट में मिठाइयों की लूट और बेबस कर्मचारियों के अपमान का नजारा देखा तो उस क्रांति से मोहभंग होगया और मैं दुखी मन वहीं से वापस आ गया। 1976 में आपातकाल में भूमिगत अस्तित्व की संभावनाओं की तलाश में जेयनयू पहुंचकर दोनों विश्वविद्यालयों की छात्र राजनीति के चरित्र में जमीन-आसमान का फर्क नजर आया। ऋणी हूं उस संयोग का।
03.12.2017
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