किसी ने एक लिस्ट जारी किया यौन उत्पीड़कों का, जिसमें न शिकायतकर्ता का पता है, न शिकायत का। लिस्टजारी करने वाली अपना काम करके फेसबुक एकाउंट बंद कर गायब हो गई। आप का नाम कोई कहीं छाप दे बिना किसी प्रमाण के, आप कैसे अपने को निर्दोष साबित करेंगे? जो लोग 1972-73 में इवि में थे वे तस्दीक करेंगे। एक दिन विज्ञान संकाय पहुंचते ही, गणित विभाग में क्लास था, गेट में घुसते ही हंगामा हो रहा था। पता चला कि बॉटनी के किसी प्रो. भटनागर ने किसी लड़की को 'उत्पीड़ित' किया है, किसीको पता नहीं। बॉटनी विभाग में तोड़-फोड़ होने लगा। तभी देखा यशपाल सोनी (सोनी छोले-भटूरे के मालिक का बेटा, अब मालिक) और वृंदा मिश्रा (गैंगवार में दिवंगत) 15-20 लोगों के साथ हॉकी लिए विभाग से निकल रहे थे। सोनी इंटर में पढ़ता था। दोनों एबीवीपी के बाहुबलियों में थे। एक शिवेंद्र तिवारी था 1974 में गायब हो गया अब तक पता नही चला। मैं एबीवीपी का प्रकाशनमंत्री था। विभाग में बीच-बीच में जोशी, मिश्र, पंत, पांडे के कमरों को छोड़कर भटनागर, श्रीवास्तव.. के कमरों में तोड़फोड़ और हाथापाई हुई। ठाकुर की पान की दुकान के ऊपर एबीवीपी का कार्यालय था। ऊपर गया तो बहस हो रही थी कि कायस्थों सालों को अभी और पेलना है (शिवेंद्र तिवारी), अगला नंबर प्रो. कृष्णाजी (भौतिकशास्त्र, कायस्थ लॉबी का नेता)। पता चला इसके मास्टर माइंड ब्राह्मण लॉबी के नेता इतिहास के जीआर शर्मा थे। मुझे पहसी बार लपता चला कि भटनागर कायस्थ होते हैं। वह एबीवीपी के राष्ट्रवाद से वितृष्णा की शुरुआत थी और उच्च शिक्षा और ज्ञान के अंतरविरोध से पहला परिचय। मेैं अब्राह्मणीकृत हो चुका था और सोचता था कि जात-पात गांव के अपढ लोगों का मामला है और प्रोफेसर जातिगत आधार पर गोलबंदी की जहालत करते होंगे, यह मेरे लिए कल्चरल शॉक था। एबीवीपी संविधान कहता है कि यह एक स्वतंत्र छात्र संगठन है जबकि संगठन मंत्री से ऊपर इसके सारे 'अधिकारी' आरयसयस के होलटाइमर थे। तभी मुझे पता चला यह आरयसयस की छात्र शाखा है। आरयसयस से जौनपुर में बाल स्वयंसेवक के रूप में वहां के प्रचारक वीरेश्वर जी (विहिप का मौजूदा राष्ट्रीय सचिव वीरेश्वर द्विवेदी) के 'बालप्रेम' से पहले ही वितृष्णा होे चुकी थी। भटनागर की घटना से ही एबीवीपी से मोहभंग शुरू हुआ और जल्दी ही उस नर्क से निकल आया। इस जून में मैं सोनी की दुकान के सामने के होटल में शादी में गया था तो उसके बेटे से मिला, पता चला कि वह शिवेंद्र तिवारी होने से बच गया।
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