इसका मतलब तुम चाणक्य के बारे में महज दंतकथाओं से जानते हो। कौटिल्य की समग्रता में राज्य की परिभाषा राजनैतिक चिंतन के इतिहास में महान योगदान है। कौटिल्य का सिद्धांत दैविक नहीं, भौतिक है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश का जन्म ही नहीं हुआ था। कृष्ण और कंस को एक साथ दानवों (अनार्य ) की कोटि में रखा गया है। राज्य का बौद्ध सिद्धांत (दीघानिकाय, अनुगत्तरानिकाय,) संभवतः राज्य की उत्पत्ति का प्राचीनतम सिद्धांत है। चारवाक-लोकायत की समृद्ध भौतिकवादी दर्शन परंपरा रही है जो अर्थशास्त्र में राजकुमारों के सेलिबस में है। ब्रह्मणों ने बौद्ध तथा भौतिकवादी दर्शन के ज्ञान को नष्टकर मनुवादी कुज्ञान फैलाना खुरू कर दिया और सत्ता की सहायता से उसे लोकाचार की आचार-संहिता बना दिया। कौटिल्य बंदर को बंदर ही मानता है, बरंगबली नहीं। "राजा की प्रसन्नता प्रजा की प्रसन्नता में है"। प्रजा का रक्षण-पालन और योगक्षेम राजधर्म है, लूट-खसोट और धनपशुओं की सेवा नहीं। इसीलिए कहता हूं, मार्क्स पढ़ने से परहेज है तो कौटिल्य पढ़ लो, बुद्ध पढ़ लो। पढ़ोगे तभी दिमाग का अबजरंगीकरण होगा। लाइन से खिसके तुम हो, मजदूर होकर खुद को मालिक की सेवा में समर्पित कर लंपट सर्वहारा की तरह अपने वर्ग से गद्दारी कर रहे हो। शुभकामना। तुम पर बहुत समय खर्च किया अब कुछ पढ़-लिख लो, अगली क्लास उसके बाद। हां, किसी राजकर्मी द्वारा राज्य की संपदा को क्षति पहुंचाने की न्यूनतम सजा मौत। कौटिल्य के नियम लागू होते तो कितने मंत्री-संत्री, अधिकारी, दलाल अब तक ऊपर जा चुके होते।
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