Friday, December 29, 2017

शिक्षा और ज्ञान 141 (सेकुलर साप्रदायिकता)

Jagadishwar Chaturvedi सहमत। देश का दुर्भाग्य है कि दो धुर दक्षिणपंथी, हिंदूतुष्टीरण प्रतिस्पर्धी, साम्राज्यवादी दलाल पार्टियों का आंतरिक और बनावटी अंतर्विरोध, राष्ट्रीय राजनैतिक अंतर्विरोध बन गया है, तीसरा विकल्प राजनैतिक पटल से गायब है, जिसकी जिम्मेदारी कम्युनिस्टों के अकर्म-कुकर्मों की है। सिख नरसंहार के बाद सहानुभूतिक अपार लहर में राहुल गांधी का बाप प्रधानमंत्री बनते ही भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे को मस्जिद (राष्ट्रीय, ऐतिहासिक धरोहर) में छल-कपट से रखी मूर्ति के दर्शन के लिए ताला खोल दिया और गेंद भाजपा के पाले में फेंक दिया। उसके गृह मंत्री, विश्व बैंक के दलाल पी चिदंबरम् मेरठ-मलियाना में विरोध प्रदर्शन को बर्बरता से कुचला और वर्दीधारी बजरंगियों से हाशिमपुरा से घरों से उठाकर अमानवीय नरसंहार करवाया। इस प्रतिस्पर्धा में उसे हारना ही था क्योंकि उसके पास स्वयंसेवकों और बजरंगियों जैसे संगठित दंगाई गिरोह नहीं था। कॉमर्सियल पाइलट से राजनेता बने मूर्ख राजीव गांधी ने प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिका में जुटकर आरयसयस के लिए मैदान खुला छोड़ दिया। वही मूर्खता उसका राजनैतिक जाहिल बेटा कर रहा है, मंदिरों की जनेऊधारक यात्राओं के जरिए कर रहा है। राजीव गांधी का सेवक गहलोत 'असली हिंदुत्व' से सांप्रदायिक हिंदुत्व से लड़ने की बेहूदी बातें कर रहा है। आरयसयस ने एजेंड़ सेट कर दिया, सब उसी पर रिऐक्ट कर रहे हैं। और तो और खुद को लोहिया का शिष्य बताने वाले और प्रदेश में यादवी गुंडागर्दी के सरगना मुलायम का आस्ट्रेलियाई हुनर वाला उत्तराधिकारी बेटा भी अपने को हिंदुत्व का असली दावेदार बता रहा है। मुजफ्फरनगर में मुलायम-मोदी के टैसिट गठजोड़ पर हमें तब भी आश्चर्य नहीं हुआ था, अब तो साफ हो गया है। जब मुजफ्फरनगर जल रहा था तो बाप-बेटे सामंती सैफई उत्सव में नाच-गाने करवा रहा था। हाशिमपुरा कत्लेआम के समय गाजियाबाद के यसयसपी रहेविभूति नारायण राय ने सही कहा था कि सरकार चाहे तो कोई भी दंगाआधे घंटे में रोक सकता है। मुजफ्फर नगर तब से अब तक जल रहा है। सारे दंगाई हत्यारे मंत्री-विधायक बने हैं। योगी भीमसेना के प्रमुख पर रासुका लगाता है तो अखिलेश ने मुजफ्फरनगर के नायक संगीत सोम और संजीव बालियान को खुला छोड़ दिया। सरकार की जिम्मेदारी थी कि विस्थापितों को उनके अपने गांव में पुर्स्थापित कर सुरक्षा प्रदान करता, इसने उनसे 5 लाख मुआवजे के बदले अपने गांवों की तरफ दुबारा न देखने का हलफनामा ले रहा था। हम लोगों के होहल्ला करने पर सैद्धांतिक तौर हलफनामा वापस ले लिया, लेकिन व्यवाहरीक तौर पर विस्थापित अब भी अपने गांवों की तरफ नहीं देख सकता क्योंकि उन्हें विस्थापित करने वाले खुल्ला घूम रहे हैं और उनके नेता केंद्र और राज्य में मंत्री, सांसद विधायक बन रोज भड़काऊ भाषण दे रहे हैं, साप्रदायिक जहर उगल रहे हैं। पढ़े-लिखे जाहिलों की जमात राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ रही है। अब तो एक ही विकल्प है, जनता जागे और सड़क से संसद जाम कर दे, लेकिन जनता को जगाने वाली ताकतें या तो सो रही हैं या धर्म की अफीम खाकर आव-बाव बक रही है। धर्म और धार्मिक राष्ट्रवाद के नशे में चूर जनता भगवान के नाम पर सारी मुसीबते झेलते हुए किसी अवतार पुरुष का इंतजार कर रही है। इन मानसिक गुलामों को जगाने और नेतृत्व प्रदान करने वाला कोई स्पार्टकस दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है।

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