नास्तिक की बातों से मगन हो ईश्वर जी के मन में अाया कि पुरी जाकर समुद्र तट स्थित अपने धाम का भ्रमण करने का मन हुअा सो दिल्ली से पु रुषोत्तम मेल के जनरल डब्बे में बैठ गये. सहयात्रियों से अपनी महिमा सुन मगन हो रहे थे जगन्नाथ जी. जगन्नाथ जी के बारे में बहुत सी ऊल-जलूल किम्वदंतियां हैं कि वे अदिवासी देवता हैं जिन्हें ब्राह्मणों ने हिंदूकरण करके अपना बना लिया, पेड़-पक्षी पूजने वाले अदिवासी क्या खाकर जगन्नाथ जैसा भगवान पूजते. म्लेच्छों को तो मंदिर के दरवाजे तक भी नहीं फटकने दिया जाता. खैर जो भी हो, एक किम्वदंति है कि जगन्नाथ किसी भी भेष में भक्त को दर्शन दे देते हैं. इसीलिये जगन्नाथ जी का प्रसाद खाते वक़्त कोई भी—मैला-कुचैला भिखारी हो या कुत्ता – या कोई भी भक्त के पत्तल में साझीदारी करे तो भक्त मना नहीं करता बल्कि मेहमान को भगवान मान प्रसाद साथ-साथ खाता है. अंदर मंदिर में क्या-क्या होता है मालुम नहीं क्योंकि मैं तो अंदर जा पाने का साहस न जुटा सका और मंदिर के बाहर से महिमा देख, लौट आया था. लौटते वक़्त परसाई जी की पंक्ति याद अा रही थी कि प्रयाग जाकर संगम स्नान न करने की बात जिसने भी सुना थूका. खैर कहानी पर वापसी करते हैं. भुवने्वर तक तो प्रभु उल्लसित होते बेराक-टोक पहुंच गये. न टीटी मिला न पंडा. उल्लास का कारण था कि कलियुग में अपेक्षा के प्रतिकूल, भक्ति भाव अौर भक्त-संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि. लेकिन ईश्वर जी का उल्लास भुवने्श्वर में ट्रेन में चढ़ कर एक पंडे ने भंग कर दिया. ईश्वर जी से पंडे ने कहा कि 1000 रुपये में वह पूरा दर्शन करा देगा अौर प्रसाद कांप्लीमेंट्री. ईश्वर ने अपना परिचय देना चाहा, पंडे ने कहा कि गोलीबाजी बंद करो, सीधे-सीधे मेरे साथ चलो, जानते नहीं पुरी के पंडे कितने ठग अौर शातिर होते हैं. इंसानों को सदा के लिये भी गायब कर सकते हैं.मैं सीधा शरीफ हूं, भक्तों को लूटता नहीं. ईश्वर ने कहा कि वे चमत्कार कर सकते हैं, पंडा बोला तुम पीसी सरकार हो क्या? सहयात्री हक्के-बक्के भगवान-पुजारी का संवाद सुन रहे थे, तय नहीं कर पा रहे थे कि गुरू का विश्वास करें कि गोविंद का. पंडे ने भक्तों को संबोधित कर कहा कि जगन्नाथ जी को कहीं अाने-जाने की जरूरत न पडे इसलिये हम खुद उन्हें रथयात्रा करवा देते पड़ेगा, किसी शातिर पंडे के हत्थे चढ़ गये तो जिंदगी भर पछताओगे, अौर अंतिम भाव 300, इससे कम में कोई पंडा नहीं मिलेगा. अौर सुनो यह गोली किसी अौर को देना, तमाम फरेबी इस मुल्क में खुद को भगवान बता देते हैं अौर तमाम मूढ़ उनकी पूजा शुरु कर देते हैं. देखो पंडा तो करना ही, मैं अंतिम रेट-250, सब काम उसी में. अपने ही मंदिर में जाने के टैक्स की बात से दुखी हो भगवान जी अंतरधान हो गये.
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