Friday, January 2, 2015

पतनशील पत्नी

देखो तो जरा इस पतनशील पत्नी के रंग-ढंग
पहुंच गया मयखाने तक पतितपन का रंग
किया इसने पहले तो मनु महराज का निषेध
मिल शूद्रों के साथ पढ़ने लगी अनधिकृति वेद
इससे भी होता नहीं राष्ट्रवाद को इतना खेद
भूल गयी यह तो मगर औरत-मर्द का भेद
खिंचाती है जाम छलकाती खुद की तस्वीर
संस्कृति के पहरुए कब तक धरेंगे धीर?
इसी लिये बनाया था मनु महराज ने कानून ऐसे
आज़ादी के ज़ुनून से बचाई जा सके औरत जिससे
बचपन में रहे वह अपने पूज्य पिता के अधीन
मालिक बने पति परमेश्वर होते ही औरत हसीन
खतरे भांप लिया था उनने औरत की आज़ादी के
कुलक्षण है जो पुरुखों की पावन परंपरा की बर्बादी के
हो जांय पतिदेव उसके जब ईश्वर को प्यारे
कटेगा कलंकित वैधव्य तब बेटों के सहारे
लगती है औरत को जब आज़ादी की आदत
ढाती है गौरवशाली मनुवादी संस्कृति पर आफ़त
किया गोलवल्कर ने जब अपना विचार-पुंज पेश
फैलाने को फिरकापरस्ती के पावन-पुनीत संदेश
बताया मनु महराज को इतिहास सर्वोच्च न्यायविद्
और कहा मनुस्मृति है कानून का सवोत्तम संविद
औरत की आज़ादी ही नहीं शिक्षा भी है खतरनाक
पढ़ी-लिखी औरतें करती ऐसी ही हरकतें शर्मनाक
सतयुग की महान नारी पति का माल होती थी
इंसानों की मंडी में बिकने पर भी नहीं रोती थी
त्रेता में होने लगा संदेह उसके सतीत्व पर
मिटाती थी जिसे वह चलकर अंगारों पर
रह जाता ग़र फिर भी संदेह किसी के मन में
स्वीकारती थी निर्वासन खुशी-खुशी किसी वन में
द्वापर में भी नारी नहीं हुयी थी इतना पतित
करती नहीं थी पति को उसे जुए के दांव से वंचित
कलयुग की नारी का देखो यह पतनशील हाल
करने लगी मनुस्मृति की पवित्र संहिता पर सवाल
करती है मर्दों की बराबरी करने का बवाल
करती नहीं सीता-सावित्री के इतिहास का खयाल
पढ-लिख कर जो चार पैसा कमाने लगी
पतिव्रता की पवित्रता से दूर भटकने लगी
इसीलिये मनु ने लगाया था नारी-शिक्षा पर रोक
पढ़-लिख कर ये बकती हैं कुछ भी बेरोकटोक
लेकिन है देश में अभी भी बची यही गनीमत
करती नहीं ज्यादातर मर्यादा तोड़ने की हिम्मत
पतनशील पत्नियों का है दुनियां में अल्पमत
फैलेगा ग़र पतनशीलता का रोग संक्रामक बनकर
कहर बरप जायेगा मर्दवाद के प्राचीन दुर्ग पर
वैसे तो पतनशीलता अंतर्निहित है हमारे इतिहासबोध में
चोटी से शुरू होकर गिरते जाते हैं काल की अंधेरी खोह में
कह गये हैं ऋषिमुनि पहले ही यह पवित्र बात
चरमोत्कर्ष से होती हमारी संस्कृति की शुरुआत
सतयुग था हमारी गौरशाली संस्कृति का उत्कर्ष
कलियुग की तरफ बढ़ता रहा पतनशील निष्कर्ष
सतयुग था ऐसा स्वर्णयुग महान
खुली बाजार में बिकते थे इंसान
होगा ही एक दिन पतनशील पत्नियों का बहुमत
आयेगी उस दिन गौरवशाली मर्दवाद की शामत.
(ईमिः2 जनवरी 2015)


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