Akshay Bhatt बहुत दिनों से सोच रहा था यह बिन मांगी सलाह देने को, लेकिन समय नहीं मिला. किसी सार्थक विमर्श की शुरुअात परिभाषा से होती है, अमूर्त, अपरिभाषित शब्दों की जुमलेबाजी, अर्थहीन,भावुक, लफ्फाजी बनकर रह जाती है. अाप तो राजनीतिक दर्शन के विद्यार्थी हैं. राष्ट्रवाद की परिभाषा जाने बिना अाप राष्ट्रवादी हैं, अौर मानवता जाने बिना मानवतावादी. शासकवर्ग के रूप में पूंजीवाद के उदय के साथ नवोदित शासक वर्ग की जरूरतों के अनुसार नई शासन व्यवस्था के रूप में राष्ट्र-राज्य अस्तित्व में अाया अौर राष्ट्रवाद की विचारधारा गढ़ी गयी. ज़िल्द देककर ही समीक्षा लिख देने की हमारी अाम अादत है, इससे बचिये. राष्ट्रवाद एक अाधुनिक अवधारणा जिसे शासकवर्गों के बुद्धिजीवी जानबूझकर अमूर्त अौर अबूझ रखते हैं. अाप राष्ट्रवादी हैं, मोदीजी हिंदू राष्ट्रवादी हैं, अाप दोनों के राष्ट्रवाद में कोई समानता है क्या? उसी तरह मानवतावाद भी नारे के पहले परिभाषित होनी चाहिये. 1 पोस्ट में अापने मानवतावाद के अध्ययन श्रोत के रूप में दीनदयाल उपाध्याय के समग्र मानवतावाद का ज़िक्र किया है, जिसे या त अापने पढा नहीं है या भक्तिभाव से पढ़ा है. यह पुस्तक मनु को मानव इतिहास का सर्वश्रेष्ठ न्यायविद अौर मनुस्मृति को दैविक ग्रंथ बताती है. समतामूलक बौद्ध अांदोलन अौर दर्शन पर "मातृधर्म" के साथ गद्दारी का अारोप लगाती है जिसकी "विकृतियों" को शंकराचार्य ने दुरुस्त किया. इसे स्वस्थ अालोचनात्मक सलाह के रूप में लें, मेरे जिज्ञासु, युवा मित्र, काफी दार-ओ-मदार है अाप सब पर. अाज की जरूरत सांस्कृतिक क्रांति की है -- जनचेतना के जनवादीकरण की, जिसकी अावश्यक शर्त है विचारों से लैस होना. जरूरत राष्ट्रवादी होने की नहीं, राष्ट्रवाद के पाखंड को खंडित रने की है. समझना होगा कि पेप्सी बेचने वाले क्रिकेट टीम के11 लड़के भारत नहीं हैं, जिन्हें हराकर अास्ट्रेलिया ने भारत को धूल चटा दिया.
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