Monday, January 19, 2015

ईश्वर विमर्श 26

Singh Arun अौर अाभासी दुनिया के इस द्वीप अभाषी मित्रों, मेेरी किसी से खेत-मेड़ की लड़ाई तो है नहीं, अौर बिना जाने-मिले अाप सब इतना सम्मान-स्नेह दिखाते हैं, उसकी अकृतज्ञता नैतिक अपराध होगा. इस ग्रुप में शायद महज़ नृपेंद्र को जानता हूं, वह भी 39 साल पुरानी बात हो गयी तो परिचय अपरिचय सा ही है, तो नाराज होने का मतलब ही नहीं होता. निराधार निजी अाक्षेप से बचना चाहिये. बचपन में मेरे पिताजी की अतिशयोक्तियों का उनके मित्र मज़ाक उड़ाते थे तो मुझे बुरा लगता था. मोदी जी जैसे धरती के प्रभुओं की अालोचना पर उनके भक्त धमकियां देने लगते हैं तो प्रभुओं के प्रभु के मज़ाक बनाये जाने पर अास्थावानों का थोडा-बहुत गुस्सा तो लाजमी है.अादिम कबीलों में ईश्वर की उत्पत्ति प्राकृतिक घटनाओं की समझ की बौद्धिक अक्षमता अौर भय के चलते हुई. ऋगवैदिक अार्यों सहित सभी प्राचीन धर्म प्राकृतिक शक्तियों -जीवनदायी तथा प्रलयकारी-- के ही उपासक रहे हैं, सभ्यता के विकास के साथ चतुर-चालाक लोगों ने असमानता पर अाधारित यथास्थिति की वैधता के श्रोत के रूप में उसे धर्म का जामा पहना दिया. धर्म ऐतिहासिक इसलिये भी है कि देश-काल के हिसाब से उसके चरित्र अौर स्वरूप, शासक वर्गों की ऐतिहासिक जरूरतों के हिसाब से बदलते रहे हैं. ब्रह्मा-विष्णु महेश की पैदायिश मौर्य शासन काल के बहुत बाद की है.

one v/s all बहस की अादत पड़ गयी है. कुछ लोग समय से पीछे होते हैं जैसे माननीय गृहमंत्री को पंडितों के पंचांग में विज्ञान से बेहतर विज्ञान हैं; ज्यादातर लोग समय के साथ होते हैं, नये रास्ते नहीं बनाते, कुछ लोग समय से अागे होते हैं अौर वक़्त के ठेकेदारों के कोपभाजन बनते हैं, जैसे गैलेलियो, रूसो, मार्क्स, भगत सिंह.

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