Sunday, January 18, 2015

ईश्वर विमर्श 17

Shashank Shekhar यार ईश्वर जी पर मेरी अौकात कि हमले करूं, सुबह 3-4 बजे से सुनसान झोपड़ी में अकेले बैठ जाता हूं.मेरी तो ईश्वर से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन तुमने अपनी ईर्श्या के चलते मुझे  उसके चक्कर में फंसा दिया जो है नहीं. मुझे अपने  students के लिये European Enlightenment के अंधेरे कोनों पर 1 नोट लिखना था. मैं बता दूंगा कि मुझसे दुश्मनी का बदला तुम उनसे ले रहे हो, हा हा. यार अच्छा बुरा वह होता है, जो होता है. जब कल्पना ही करना हैतो कैसी भी कर लो. जब मन की ही करनी है तो बहुरी क्यों चबाओ रसमलाई खाओ. लेकिन अास्तिक दिमाग के इस्तेमाल में इतने अालसी होते हैं कि कल्पना भी मौलिक नहीं करते, पूर्वजों की कल्पनाओं को रटंत विद्या की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी अागे बढ़ाते हैं.  जो है नहीं उसपर हमला नहीं बोला जाता, उसका मज़ाक उड़ाया जा सकता है.  प्रमोद जी सही कह रहे हैं जो नहीं है उसके बारे मे क्यों लिखना. दर-असल जो है उसे समझने में असमर्थता के चलते सभ्यता के क्रूर यथार्थ छिपाने के लिये जो नहीं है उसी के बारे में ज्यादा लिखा जाता है. इसीलिये यूरोप अौर  भारत के लंबे अंधकारयुग में जो नहीं हैं, ईश्वर, दौविक शक्तियां अादि के बारे में ही लिखा जाता रहा है. पुष्पा जी मैं बुराई कहां कर रहा हूं मैं तो 1 अदृष्य, कल्पित, सैद्धांतिक अवधारणा का मज़ाक उड़ा रहा हूं जिसके नाम पर सभ्यता का इतिहास रक्तरंजित होता रहा है. साधरणता का अद्भुत अानंद इतना रास अाता है कि खुद हाईलाइट करने की जरूरत न महसूस हुई.

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