हर समाज अपने क्रमिक विकास के हर चरण में, ऐतिहासिक-,भौगोलिक जरूरतोंं के अनुसार अपने जीविकोर्पाजन के साधन,भाषा, मुहावरे, कहावतें, धर्म, देवी-देवता की अवधारणाओं का विकास करते हुये, फल-फूल; कंद-मूल से जीविका से शुरू करके पाषाण-युग से अंतरिक्ष युग तक पहुंचे. लेकिन हमारे ऋगवैदिक पूर्वजों को व्रह्मा जी ने ज्ञान-विज्ञान अौर सोमरस से लैस कर सर्वगुण संपन्न पैदा किया था, जहाज अौर अंतरिक्षयान का उन्हें ज्ञान था. यह अलग बात है कि वे इस नाम से अपरिचित थे, अौर महज़ अनुभूत प्राकृतिक शक्तियों -- अरुण, वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा करते थे, ब्रह्मा की पैदाइश बाद की है. यह भी अलग बात है कि पूरे ऋगवेद में पशुधन पर ही जोर दिया गया है.
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