Monday, January 12, 2015

फुटनोट 25

एक बार (2012 में) अपने गांव के इलाके में, अाज़मगढ़-जौनपुर के सीमात के एक अपरिचित चौराहे पर चाय की चुस्की के साथ चाय की अड्डेबाजी की बतकुच्चन का भी रसास्वादन कर रहा था. मोबाइल महिमा पर विमर्श चल रहा था. तभी एक सज्जन को एकाएक क्रोध अा गया अौर चिल्लाकर बोले इसी मोबाइल का नतीजा है कि हर गांव से 5-5 लड़कियां भाग रही हैं. 30 सेकंड का सन्नाटे के बाद तूफान सा अा गया. लोगों को एक जोगदार अावाज सुनाई दिया -- भागने वाली बहादुर लड़कियों को सलाम. कल्चरल शॉक. ऐसी पापपूर्ण बात कहने वाला कोई लौंडा-लफाड़ी नहीं सफेद दाढ़ी वाला बुज़ुर्ग सा दिखता अादमी था. लोग हक्का-बक्का हो मुझे एकटक देखने लगे. उसके बाद के दृष्य की कल्पना कीजिये.


उसके बाद तो रण ठन गया -- एक बनाम सब--वृद्ध-बालक समेत- एक 46 किलो का बुजुर्ग बनाम 15-20 हट्टे-कट्टे लोग. अंत में जब तर्क से पराजित होकर 1 अादमी गुस्से में बोला अाप अपनी बहन-बेटी की शादी चमार से कर देंगे? मैंने कहा मैं तो खुद चमार हूं. सबकी बोलती बंद. अाक्राम कुतर्की मर्यादित विद्यार्थी बन गये. कहने लगे अापकी बात ठीक है लेकिन यहां नहीं चलेगी. मैंने कहा तो 5 के बदले 10 लड़कियां भागेंगी.

पीटा तो नहीं उन लोगों ने, कुछ लडके कुनमुना रहे थे, लेकिन मैं शरीर का वजन अौर संख्या देख कर बात मान लूं तब तो मुझे दुनिया के लगभग 99.9% मर्दों से डरकर रहना पड़ेगा इसलिये मैंने डरना बंद कर दिया. भीड़ में बहादुरी दिखाने वाले नायक डरपोक होते हैं. भीड़ में कुत्तों की तरह शेर बन जाते हैं अौर अकेले में पत्थर उठाने के नाटक से ही दुम दबाकर भाग जाते हैं. युगचेतना को चुनौती देने के चलते अक्सर विमर्श में अल्पमत रहता हूं संख्या से डर जाऊं तो चुप ही रहना पड़ेगा, अौर अगर अापकी बात में दम है तो अंततः लोग मानेगे ही व्र्यवहार तुरंत भले न करें. जैसा उन लोगों ने सिद्धात में ततो मान ही लिया. मेरे चमार बनने पर तो वही सब सकपका गये. लोगों के दिमागों में संस्कारजन्य पूर्वाग्रह भरे होते हैं. सबसे पहले तो उनकी समझ में यह नहीं अाया कि मरियल सा बुड्ढा अकेला उपस्थित जनमत के विरुद्ध इतने विश्वास अौर अकड़कर तर्क कर रहा है. हास्य का स्तर भी ऐसा ही. एक नवजवान ने पूछा मोटरसाइकिल मैं ही चला कर लाया हूं, मैंने कहा नहीं सिर पर रख कर लाया हूं. बाद में पता चला कि वह प्राइमरी का शिक्षसक था.मेरे चमार बनते ही उनके दूसरे पूर्वाग्रह को झटका लगा. "बाप रे, चमार होकर इतना निडर अौर तर्कशील!" तीसरा डर कि कहीं मैं न कह दूं कि तुम अपनी बहन बेटी की शादी मेरे घर में करोगे. उनको यह नहीं समझ में अाया होता कि मेरी बेटी जिससे प्यार करेगी उससे शादी करेगी (किया) यदि उसे शादी करना होगा क्ययोंकि हमने उसे नहीं सिकाया कि जाति देखकर प्यार करे. अौर कहीं न कहीं यससी-यसटी ऐक्ट का भी डर रहा होगा. गुंडों का अातंक भय पर अाधारित है, लोग डरना बंद कर दें तो गुंडे भी मजबूरन इंसान बन जाते हैं. क्या कर लोगे? जान ले लोगे? कोई किसी की जान ले सकता है. 5 बच्चे किसी पहलवान को पीट सकते हैं, वैसे रहस्य की बात यह है कि सत्ता तथा गुंडे का भय होता है, ईमानदारी का अातंक.

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