Saturday, January 31, 2015

नास्तिकता

फरमाया एक ईश्वर भक्त ने
कि वंचित रहते हैं ईश कृपा से वे
होते  नहीं जो विचलित उसकी अाभा से
देखते नहीं उसे जो उदारता से
यह कैसी सर्वशक्तिमान पुकार
 जिसे इंसानी उदारता की दरकार
नास्तिक करता साहस अलौकिक के पर्दाफाश का
रखता नहीं मोह ईशकृपा की झूठी अास का
साहस करता वो जानने की लौकिकता
अौर नाज़ खुद की समझ पर अमल करने का
ईश्वर-कृपा देती है सकून का उतना भरम
हो जैसे चुनावी वायदों  का कोई मरहम
धरम-जाति है सरमाये की सियासी रोटी-पानी
साधू-साध्वी अब बनने लगे हैं राजा रानी
नकारते हैं जो बातें ईश्वर की मान्यताओं की
समझते हैं वो चालाकी मजहबी अाकाओं की
जानते हैं वे कि होती नहीं कोई अलौकिक हस्ती
होती जिनकी विवेकजन्य प्रमेयों में निष्ठा
चाहिये नहीं उन्हें किसी ईश्वर की कृपा
साहस है जिनमें खुदा को ललकारने का
होता उनका ज़ज्बा कृपाओं को दुत्कारने का
खुदा को नहीं मानने से नाराज़ हो जाते नाखुदा
सुझाते हैं मौत तक नास्तिकता की सजा
 झेलता है नास्तिक खानाबदोश पलायन की यातना
गिरवी मगर रखता नहीं धर्म-मुक्त अपनी चेतना
सुकरात ने दे दी थी जान मगर छोड़ी न सच्चाई
सुकरात की बात फिर गैलेलियो ने दुहरायी
दिदरो अौर वोल्तेयर ने झेला कारावास
तोड़ न सका ज़ज़्बा उनका खुदा का संत्रास
भटकते रहे रूसो तहे ज़िंदगी दर-बदर
छोड़ा नहीं उन्होंने मगर जनपक्ष की डगर
बहुत लंबी है हमारे पूर्वजों की फेहरिस्त
कार्ल मार्क्स हैं जिसकी एक अहम किस्त
झेल लिया उनने अाजीवन देशनिकाला
बदला नहीं मगर कभी नास्तिकता का पाला
करते रहे भगत सिंह खुदा की हस्ती पर प्रहार
लटक रही थी सर पर जब मौत की तलवार
खुद बनाता है अपनी नयी राह नास्तिक
 घिसी-पिटी लीक पर चलता है अास्तिक
नहीं मानता मैं भी किसी खुदा की हस्ती
हो जाये दुश्मन चाहे धर्मांधों की बस्ती
(ईमिः01.02.2015)

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