Shashank Shekhar मुझे संबोधित तुम्हारे कमेंट पर गंभीरता से लंबी प्रतिक्रिया की दरकार है. पहले छोटी-मोटी/हल्की-फुल्की टिप्पणियों से फारिग हो लूं. लेवर किन ईश्वर को ईश्वर की तरह रहने की तुम्हारी हिदायत पर मुझे बचपन में अपने एक पूर्वज के भूत को दी हिदायत याद अा गयी. मेरा गांव एक छोटी नदी कि किनारे था, उसके बीहड़ों, तटीय खेतों के अास-पास के पेड़ों, बागों अौर वन में कई प्रभावशाली भूत रहते थे. उनमें कई हमारे पूर्वज थे. नदी के किनारे के एक खेत में गूलर के पेड़ पर हमारे किसी पूर्वज ढ़वा बाबा की अात्मा रहती थी. तब तक मैं भूत के डर से उबर चुका था. बुढ़वा बाबा से संवाद कर चुके कई लोग थे. रात में मक्के खेत में मचान पर सोने का मन मार कर जाता था. मेरे पिताजी से रात में सुर्ती मांग कर खाते थे. मेरे पिताजी को रोचक गल्पकथाओं का बहुत शौक था. धान के खलिहान में भी कई भूत-चुड़ैलों को भगा चुकने की कहानियां भी बताते थे. मैं 13-14 साल का थै तथा तब तक भूतों को ललकारने लगा था कोई मेरा कुछ बिगाड़ न पाया. एक बार बुढ़वा बाबा को कुछ उल्टा-सुल्टा बोल दिया तो एक दोस्त ने कहा कि हमारे पूर्वज हैं, तो मैंने कहा पूर्ज हैं तो पूर्वज की तरह प्यार से रहें, बच्चों को डराते क्यों हैं.
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