ईश्वर की बहस से अब विदा लेता हूं, क्योंकि ईश्वर के बंदों का धैर्य टूट रहा है अौर अऩाप-सनाप बक रहे हैं. ईश्वर इतना अारर है कि उसकी रक्षा में बंदे बौखला जाते हैं. जिनमें अात्मबल की कमी नहीं होती, जिनके पास विचारों की दृढ़ता होती है उसे किसी काल्पनिक ईश्वर के संबल की अौर धर्म की वैशाखी की जरूरत नहीं होती. बस जरा सोचिये यो इतने अलग अलग ईश्वर क्यों हैं अौा करते हैं वह उनके बंदे इतना रक्तपात उत्पात क्यों करते हैं. उन्हें रोकने में में अक्षम है क्या? उसके बंदे जरा सी अालोचना पर बौखला कर भाषा की अपनी धर्मपरायण तमीज जाहिर कर ही देते हैं. यूरोप के प्रबोधकाल पर लेख लिख रहा हूं जिस दौर में बड़े-बड़े दार्शिनकों को ईश्वर के बंदों को दर-ब-दर भागना- भटकना, जेलयातना सहन करना पडा था. ईश्वर के अस्तित्व को चुनौती देने वाले वोल्तेयर, दिदरो अौर रूसो कष्टों से डरने वाले नहीं थे, न ही गैलेलियो डरे थे पादरियों के खौफ से न भगत सिंंह डरे मौत के खौफ से.भगत सिंंह का नास्तिकता का लेख पढ़ें. कहें तो लिंक दूू. शुभ रात्रि.
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