हमारे ऋगवौदिक पूर्वजों ने भविष्य में होने वाले सभी ज्ञान-विज्ञान की खोज लाखों साल पहले कर लिया था. सदियों की गुलामी अौर विदेशी प्रभाव से विकृत मानसिकता के इतिहासकारों, खासकर खुद को अार्यभूमि अौर नस्लीय पवित्रता के महानायक, पपू गुरूजी के अाराध्य, पपू हिटलर की कर्मभूमि, जर्मनी से निष्कासित, एक विधर्मी, मार्क्स के चेलों ने, स्यूडो सेकुलरिस्ट साजिश के तहत हमारे सर्वज्ञ पूर्वजों के जीवन काल को लाखों की जगह हजारों साल पहले खिसका दिया. हमारे ऋगवैदिक पूर्वजों ने अंतरिक्ष विज्ञान में इतनी प्रगति कर ली थी कि उन्होने अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यान विकसित कर लिया था जिसे अब के वैज्ञानिक अाने वाले हजार साल में नहीं विकसित कर पायेंगे. इन अंतरग्रहीय विमानों से हमारे अर्ध-खानाबदोश, चरवाहे, ऋगवैदिक पूर्वज गाय चराने मंगल पर जाते थे अैर बकरियां शुक्र पर चराते थे. एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक सोमरस की तस्करी भी वे इन्ही विमानों से करते थे. उनके वंशज नालायक अौर जाहिल निकले, सारा ज्ञान-विज्ञान विदेशियों को चुराने दिया या बेच दिया. इतने कायर अौर कमजार होते गये कि नादिरशाह नामक चरवाहा भी कुछ हजार घुडसवारों के साथ जब चाहा पेशावर से बंगाल की धरती घोड़ों की टापों से रौंद डाला. सदियों बाद पहली स्वाभिमानी सरकार अायी है जो अरबों खर्च कर विदशी विद्वानों की कंपनियों की मदद से हमारे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की पुनर्स्थापना के लिये प्रतिबद्ध है. अबकी बार वैदिक सरकार. पिथोरागढ़ सिद्धांत को पाइथागोरस सिद्धांत बताना व्यापक साजिश का तुच्छ भाग भर है.
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