Sunday, January 25, 2015

ईश्वर विमर्श 29

Shashank Shekhar 1. इंसान होने का दावा ज्यादा होता है इसी लिये निष्ठा स्व-हित से परे सर्वहिताय विचारों के प्रति होती है. नास्तिकता वाद नहीं उह लोक के अस्तित्व के निषेध के साथ इहलोक की भौतिकवादी व्याख्या अौर तथ्य-तर्कों के अाधार पर किसी दैवीय शक्ति के अस्तित्व का निषेध है. 2. ईश्वर मेरे जीवन -तेरे जीवन क्या जिस का अस्तित्व ही नहीं वह कहीं नहीं हो सकता उसका वहम हो सकता है जैसा कि भूत का वहम. ईश्वर ऐतिहासिक कारणोॆ से मनुष्य निर्मित अवधारणा है इसीलिये देश-काल के अनुसार उसका चरित्र अौर स्वरूप बदलता रहता है. 3. अनंत अौर असीम परिभाषित अवधारणायें हैं. ईश्वर एक ऐतिहासिक अवधारणा है जिसे हम जानते हैं कि मनुष्य ने गढ़ा अौर गढ़ता रहता है इसलिये उसके अस्तित्व को नकारते हैं. दुनिया में बहुत कुछ जाना जा चुका है बहुत कुछ जानना बाकी है  जो अज्ञात है वह ईश्वर नहीं बल्कि भविष्य के शोध का विषय है, जैसे अतीत की कई अज्ञात बातें अाज ज्ञात है.4. बिल्कुल सही कह रहे हो कि अालमारी पर स्थिति पेन ब्रह्मांड में भी है, अालमारी पर न पाकर कहूंगा कि पेन लगता है कहीं गायब हो गयी है. इसलिये नहीं कहता कि मेर मन मे नहीं है इसलिये नहीं है बल्कि इस लिये कि भय अौर प्राकृतिक परिघटनाओं की समझ की अक्षमता से उपजी दैविक शक्ति की अवधारणा के विकास का संपूर्ण इतिहास है. भगवान की अवधारणा सार्वभौमिक नहीं ऐतिहासिक है इसी लिये ऐतिहासिक जरूरतों के अनुसार उसका सव्रूप अौर भूमिका बदलते रहे हैं. पहले वह गरीब अौर दुकिया की मदद करता था अब उसकी जो ताकतवर है. पुनश्चः वमैं बहस के लिये बहस में यकीन नहीं करता, इसलिये जो कहता हूं ईमानदारी की सनक के साथ.

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