Thursday, January 22, 2015

गरीब सिपाही

 इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1970 के दशक के वुद्यार्थी परिषद के नामी-गिरामी नेता अौर छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष उप्र भाजपाबौद्धिक सेल के प्रभारी राजनैतिक बेरोज़गारी से जूझते हुये मन बहलाने के लिये फेसबुक पर महाभारत-रामायण के हिंदुत्व संसकरण पोस्ट करते रहते हैं. अाज उन्होंने मन की पीड़ा किसी का शेर पोस्ट कर व्यक्त किया कि मंज़िल पर वे पहुंचे जो सफेर में शरीक ही न थे. उस पर यह टिप्पणी लिा गयी.

लडता रहा है हमेशा ही गरीब सिपाही
मिलती नहीं मगर कभी उसे जीत की मलाई
लड़ता था जब अौरंगजेब-ओ-शिवाजी की लड़ाई
लेता था लूट के माल का चौथाई
हड़प जाता था राजा बाकी तीन चौथाई
न था राष्ट्रप्रेम न राष्ट्रवाद का बवाल
जान की जोखिम के पीछ था पेट का सव
न था हिंदु-राष्ट्र न ही निज़ाम-ए-इलाही
मकसद था माल मचाकर तबाही
हुआ जब पूंजीवाद का आगाज़
सल्तनतें बन गयीं राष्ट्र-राज्य
खिसकने लगी ब्रह्मा से वैधता की बुनिीयाद
लोगों की नई अफीम बन गया राष्ट्रवाद
पुराने की तरह अमूर्त है यह नया धर्म
समझता नहीं जो सिपाही के मन का मर्म
करता है सिपाही ही आज भी लड़ाई
 सात घेरे की सुरक्षा में वो हड़पता मलाई
लेता है सिपाही मार-काट की मुसीबत
समझता नहीं वो निज़ाम-ए-ज़र की हक़ीकत
समझेगा जिस दिन वो अट्टलिकाओं की बुनियाद का राज़
करेगा एक नयी ज़ंग-ए-आज़दी का आगाज़
तानेगा न बंदूक अपने ही बंधु-बांधवों पर
साधेगा निशाना ताज़-ओ-तख्तों पर
बदल जायेगा राज-पाट का अंदाज़
 धरती पर होगा मजदूर-किसान का राज. (हा हा ये तो कविता सी हो गयी. )
(ईमिः23.01.2015)

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