Friday, January 30, 2015

जमाना है दोनों का रक़ीब

होता है है प्यार में विचारों का भी मेल
होती नहीं मुहब्बत महज दिलों का खेल
इसीलिये नहीं होती जूता लात की बात
 चूकते नहीं मगर करने से शब्दाघात
 होती रहती जो शब्दों की भिड़ंत
 फ्रायडियन चुम्बकत्व का हो जाता है अंत
 रहता है ऐसी मुहब्बत का सिलसिला अाबाद
 होते हैं विचार जिनकी बुनियाद
होता है इस इश्क में इक त्रिकोण अजीब
 जमाना बन जाता है दोनों का रक़ीब
होता महबूब भी बस इक अज़ीज़ हमसफ़र
साझे सरोकारों पर करते जो जिरह-ओ-बसर
करते हैं इक-दूजे को जब अलविदा
साथ ले जाते हैं मोहक यादों का पुलिंदा.
(ईमिः31.01.2015)

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