Monday, June 30, 2014

प्रकृति के विनाश का विकल्प

चाय बागान का अहोभाग्य
रेणु से मुलाकात का सौभाग्य
यह उन्मुक्त ओ उन्मत्त मुस्कान
प्रकृति को करती और छटावान
नहीं गुमान प्रकृति पर विजय का
हर्ष है साथ उसके सामंजस्य का
यही रहा है सदा से कुदरती नाता
सदैव रही है प्रकृति जीवन दाता
निजाम-ए-ज़र ने बदला विधान
छेड़ दिया है प्रकृति पर घमासान
किया कुदरती रिश्ते को लहूलुहान
बनाता है उस पर धन की सीढ़ियां
भाड़ में जायें अगली पीढ़ियां
होंगी वे भी तो धरती की ही संतान
उन्हें भी चाहिए प्रकृति का वरदान
आइए लेते हैं आज यह संकल्प
ढूंढ़ेंगे प्रकृति के विनाश का विकल्प
(ईमिः01.07.2014)

3 comments:

  1. विनाश का विकल्प

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  2. जी आज तक यही तो करते आ रहे हैं और हर नया विकल्प पहके विकल्प से और विनाशकारी तो आपने सही ही तो कहा। क्या नहीं?

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