Wednesday, June 25, 2014

अगली मंजिल

मंजिलें और भी हैं इस मंजिल से आगे
जोड़ना है इन सभी मंजिलों के धागे
रहती अगली मंजिल की सदा हसरत
बढ़ते ही जाने की है मेरी फितरत
एथेंस में करता सुकरात सी चहल
कारों के बेदर्द शहर में गाता ग़ज़ल
हमसफर हाजी कहते मुझे बुतपरस्त
खैय्याम कहते हूं हाजी जबरदस्त
लड़ते बढ़ते बस चलता जाता हूं
पहुंच मंजिल पे थोड़ा सुस्ताता हूं
खत्म नहीं होता सफर पाकर मंजिल
अगली फिर अगली का करता है दिल
(ईमिः 26.06.2014)

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