Sunday, June 29, 2014

पल पल बदलती हो तुम बार बार

पल पल बदलती हो तुम बार बार
बदले स्वरूपों का मगर साश्वत है सार
चकित हिरणी सी आंखों में असीम प्यार
भले ही दिखें करती तीक्ष्ण सरवार
पक्व-बिंब से अधरों का गतिविज्ञान
बिखेरता प्रासंगिक गूढ़ मुस्कान
यहीं तक रोकता हूं फिलहाल कलम
आगे का वर्णन अभी बना रहे भरम
(ईमिः30.06.2014)

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