Monday, June 16, 2014

तोलकर बोलते हैं

तोलकर बोलते हैं बोलते हैं जब भी
समझते हैं बदले वक़्त की तासीर भी
नहीं है अपनी फितरत चुप रहने की
आदत है जो हक़ीक़त बयान करने की
जगह थी जिन कमीनों की जेल में
तख्तनशीं हैं वे सियासती खेल में
अपन तो साथ हैं मजलूमों-महकूमों के
ज़ंग-ए-हक़ हमसफर खाक़नशीनों के
होते हैं ग़र हाथ कलम तो हो लें
अपना कलम तो उगलेगी शोले
हिम्म्त बहुत है इस 46 किलो की शरीर में
देखेंगे जगह है कितनी ज़ालिम की जेल में
(ईमिः16.05.2014)

2 comments: