Sunday, June 1, 2014

लल्ला पुराण 155

इसीलिए मैं बता नहीं रहा था. मेरे गवना के दूसरे -तीसरे दिन मेरी चौराहेबाजी की आवारागर्दी जन्य निशाचरी पर मेरे दादा जी गुस्सा कर रहे थे. छुट्टी में घर जाने पर रोज का मामला था. मेरे घर पहुंचते ही गुस्सा प्यार की झिड़की में उभिव्यक्त होती. "ई पगला .... यतने रतिया ले............" मेरी पत्नी को लगा कहीं धोखे से उनकी शादी सचमुच के पागल से हो गयी. हा हा. अब भी बात बात पर याद दिलाती रहती है कि दादा जी ठीक कहते थे. हा हा

वैसे जिस घटना पर मेरा नाम पागल पड़ा और जिन घटनाओं से पुष्ट होता रहा उन पर 4 दशक बाद सोच कर खुद पर फक्र ही होता है. हमे कई बार विचार विलोम दिखते हैं वह इसलिए कि जिस दुनिया के वे विचार हैं वह उल्टी है, विचारों का सीधा करने के लिए दुनिया सीधी करना पड़ेगी. स्वार्थी दुनिया में एक 5-6 साल का बालक श्रम-समय खर्च कर छोटा-मोटा परमार्थ कर देता है तो उसके दादा जी उसे पागल कहकर प्यार डॉंट लगा देते हैं, और गांव के लड़के ले उड़ते हैं.

Chandra Bhushan Mishra Ghafil गा़फ़िल जी आप क्या पूरी बगिया चश्मदीद है, हमारी तो सीर्जनिक डील हुई थी, हां नहीं तो. इस बालिका ने कहा उस पर कभी दो शब्द नहीं लिखा, मैंने  कहा मेरा क्या जाता है 4 शब्द लिख देता हूं, ब्ल़ग में एक प्रविष्टि बढ़ जायेगी. जिन्हें अच्छी लगी उनका शुक्रिया कर दिया.  Shashank Shekhar अभी तो लाल झंडा नहीं पकड़ाया है, संस्कारों से विद्रोह की दहलीज तक ही पहुंचाया है. अंतःतथ्य अभी पूर्वकथ्य तक ही पहुंचा है.

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