Saturday, June 21, 2014

इतिहास का सिकंदर

सोचता है वह खुद को इतिहास का सिकंदर
चाहता ऱखना दुनिया जो जूते की नोंक पर
की थी उसने यूनानी नगर-राज्यों से शुरुआत
किया बर्बर लूट-पाट और भीषण रक्तपात
रौंदा  घोड़ों की टापों से दर्शन की परंपराओं को
और जनतांत्रिक संविधानों की ऋचाओं को
पढ़ता नहीं तानाशाह ढंग से इतिहास
होता है हर सिकंदर का वीभत्स विनाश
बढ़ता रहा आगे करते अभूतपूर्व जनसंहार
सोचा उसने करने को जब रावी नदी पार
मालुम हुआ उसे मगध की सेना का आकार
हार गयी हिम्मत और टूट गया अहंकार
टूटता है जब किसी अहंकारी का अहंकार
हो जाता है वह मनोविकार का शिकार
खंडित हुई जब विश्वविजय की अभिलाषा
छा गई उस पर जिजीविषा की निराशा
लौटा वापस वह लश्कर-ए-मातम के साथ
पड़ गया हिंदुकुश के कबीलों के हाथ
बनना चाहता था वो दुनियां का लंबरदार
कर न पाया सिकंदर 25 साल भी पार
मिल गया हिंदुकश की पहाड़ियों की खाक में
था जो दुनिया पर राज करने की फिराक़ में
हो गया उसके साम्राज्य का सत्यानाश
करके यूनानी सभ्यता के गौरव का नाश
देता था जिसकी मिसाल इतिहास
शीघ्र ही बन गया रोम का दास
सीखना है हमको इतिहास से
बचाना है मुल्क संभावित विनाश से
(ईमिः22.06.2014)

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