Wednesday, June 4, 2014

लल्ला पुराण 156

बहुत सवाल हो गये हैं, सबका सार एक ही है कि औरत की जाति नहीं होती और बलात्कार का संबंध यौनिकता से  है, ज्यादातर मामलों में यह मर्दवादी-जातिवादी विकृति और अहंकार का परिणाम है. गुजरात और मुजफ्फरपुर-शामली में सार्वजनिक-सामूहिक बलात्कार किस यौनिकता की श्रेणी में आता है? सुमंत औरत की औरत जाति होने के साथ उसकी वर्गीय-जातीय जाति भी होती है. ऊपर के लिंक में मैंने अप्रिल-जून 2011 के बलात्कार और बलात्कार की अखबारी खबरों को मैंने कविता में व्यक्त करने की कोशिस की है. इनमें से ज्यादातर पीड़ित दलित या आदिवासी और असम्मान हत्या के मामले हैं. वंचित तपकों -- खासकर दलित और अल्पसंख्यक महिलाएं दुहरी वर्जना की शिकार होती हैं. "अबकी मैं सिर्फ लड़की हूं दलित नहीं/इकहरी वर्जना की वेदना भी होती कुछ कम नहीं ".D.k. Dadsena ने कुछ उदाहरण दिए हैं. @Dhananjay Tripathi : आप जैसे यथास्थितिवादी नाकारे लोग और कुछ काम होता नहीं दूसरों की बातों में आधारहीन अवसरवादिता ढूंढ़ने लगते हैं, माना कि दिमाग लगाकर मुद्दों की आदत छूट गयी है, लेकिन फिर भी पोंगापंथी फतवेबाजी की बजाय दिमाग लगाने की कोशिस करें क्योंकि दिमाग ही इंसान को पशुकुल से अलग करता है.

पिर से पढ़िए. महिलाएं जाति बनाती नहीं बल्कि जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना के चलते किसी जाति विशेष में पैदा हो जाती हैं. मैं जातुवाद के उन्मूलन का पक्षधर हूं लेकिन जैसा मैंने कहा जाति और जातिवाद हमारे समाज की वीभत्स हकीकत है. वंचित वर्गों की महिलाएं दोहरे उत्पीड़न का शिकार होती है. यह क्या महज संयोग है कि बलात्कार की शिकार ज्यादातर महिलाएं दलित हैं. मैंने करब कहा दलित वाटर टाइट कंपार्टमेंट है लेकिन दलितत्व(शूद्र वर्ण की जातियां ही दलित हैं). सांप्रदायिक हिंसा में यौन-पूर्ति का मामला नहीं होता, मानमर्दन का अहंकार होता है. 

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