Tuesday, June 17, 2014

परंपरा

रवायतें कर नहीं पायेंगी  नज़र-ए-ज़िंदां अब आज़ादी
कर्णकटु लगने लगी है पुरानपंथ की बेअसर मुनादी
सर पर बोझ हैं परंपराएं बाबा आदम के लाशों की
पांवों में जड़ती हैं बेड़ियां वर्जनाओं और निषेधों की
भड़काती हैं समाज में भेड़चाल दे दुहाई संस्कारों की
सलामत रहें जिससे गद्दियां सभी सरमायेदारों की
बनाती हैं तोते और उनके पिजड़े ज्ञान के सलाखों की
पंडित की पोथी जिससे गढ़ती रहे किस्मत लाखों की
चली है अब तो दुनियां में सवालों की एक नई बयार
साबित करो तभी ये बच्चे मानेंगे कोई विचार
टूटेंगी ही अंध-आस्था की रवायतों की रूढ़ियां
नई रीतियां गढ़ेंगी हमारी हर अगली पीढ़ियां.
(ईमिः17.06.2014)

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