Kumud Ranjan Singh वैसे आपके सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं थी, लेकिन मायूस न हों दे देता हूं. पहली बात, बुढ़ा़पा होगा आपका. बुढ़ापा उम्र से नहीं युवा सोच और संघर्ष के जज़्बे की कमी से आता है. मैं एक उम्रदराज़ युवक हूं. युवा उम्र की तमाम ज़िंदा लाशें भटकती दिखती रहती है, जान भी आती है तो तो कुर्सी की वफा में. दूसरी बात,मुझे कैसे दुर्घटनाबस उस उम्र में (सेवा-निवृत्तिकी आयु 65 साल होने के चलते चाहूं तो उसके एक दिन पहले स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की अर्जी दे सकता हूं ) कैसे नौकरी मिल गयी का जवाब इसी मंच पर किसी के ऐसे ही सवाल के जवाब में दे चुका हूं, ब्लॉग से खोजने की कोशिस करता हूं, नहीं तो फिर से बहस के लिए लिख कर पेस्ट करता हूं. बस इतना बता दूं कि जुगाड़ या कृपा से नौकरी लेना होता तो कम-से-कम 15 साल पहले मिल जाती. 4 साल एक ऐसे कुलपति थे जिनके बेटी-बेटा मेरे करीबी दोस्त थे. और अगर तेवर थोड़ा नर्म कर लेता तो कम-से-कम 10 साल पहले. बिना नौकरी के भी यही तेवर थे. और तीसरी बात मेरी नौकरी एढॉक से नहीं रेगुलराइज हुई. मुझे कभी कोई एढॉक नौकरी कभी मिली ही नहीं और नियमित का इंटरविव मजाक बन जाता है क्योंकि उस पद पर पहले से कोई स्वाभाविक दावेदार पढ़ा रहा होता है. अपवाद नियम की पुष्टि ही करते हैं. वरिष्ठ लोग जानते हैं कि पहले विभाग इंटरविव करके 30 का एढॉक पैनल बनाता था, मेरा नाम पैनल में हमेशा काफी ऊपर होता था. एक बार तो ऐसा हुआ कि पैनल में सिर्फ मेरा नाम बचा था. प्रिंसिपल ने पैनल से बाहर से किसी को रख लिया और बोला जिसे रखा है वह उसके चाचा का लड़का तो नहीं है, अब मुझे तो मालुम नहीं उसके कितने चाचा-बाप थे. दुबारा सिर्फ मेरा और राजेंद्र दयाल के नाम बचे थे भ्रष्ट विभागाध्यक्ष ने पैनल से बाहर किसी का नाम भेज दिया, पूछने पर नतीजे भुगतने की धमकी देने लगा. अगर आप राजनीतिशास्त्र के वरिष्ठ शिक्षक राजेंद्र दयाल को जानते हों तो उन्हें उस हेड के साथ संवाद के बारे में पूछ सकते हैं, 25 साल से ज्यादा पुरानी बात है. मुझे देर से नौकरी मिलने की शिकायत नहीं है, बल्कि सौभाग्यशाली मानता हूं कि देर से ही सही मिल कैसे गयी, वैसे नौकरियां में मेरी कभी दूसरी प्राथमिकता नहीं रही. अंत में थोड़ी अपनी तारीफ और कर दूं, मेरे स्टूडेंट्स मुझे बहुत अच्छा टीचर मानते हैं और यह कि मेरा पहला (and the best researched as yet) पेपर 1987 में छपा था जो कि नारी-समस्या और सांप्रदायिकता पर पहला काम था और गूगल पर देख रहा था तो पाया कि नम्बूदरीपाद और तनिका सरकार समेत की लेखकों ने उद्धृत किया है.
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जियो ये तेवर बने रहें गधों को रेंकने को प्रोत्साहित करते रहें ।
ReplyDeleteha ha
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