एक फेसबुक मित्र Pramod Kumar Singh ने एक मशविरा मांगाः
"इक मशवरा चाहिए था साहेब !
दिल तोड़ा है इक बेवफा ने , जान दे दूं या जाने दूं ।"
चलिए दे देता हूं,
वैसे मुफ्त का मशविरे की क़द्र कोई करता नहीं
निःस्वार्थ फितरत की बात कोई मानता नहीं
तोड़ दे जिस दिल को एक हल्की बेवफाई
कीजिए मरम्मत और दिल की सफाई
बहुत ही आसान काम है जान दे देना
मिल ही जाता है कोई-न-कोई बहाना
मुश्किल है ज़िंदगी सी ज़िंदगी जीना
गढ़ते हुए नैतिकता का नया पैमाना
कर लेता है हर कोई आसान काम
मुश्किलों को आइए बना दें आसान
वैसे भी वफाई में मिल्कियत की बू आती है
अपन को तो पारस्परिकता की खुशबू सुहाती है
आइए जलाते हैं वफाओं की होली
और मनाएं जश्न बनकर हमजोली
(ईमिः 03.06.2014)
(हा हा यह तो तफरी में गज़ल टाइप कुछ हो गयी)
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