उजाड़ दो यादों की दुनिया जो इतनी छोटी हो
छोटा सा टीला ही जिसमें पहाड़ की चोटी होे
दो इस दुनिया को हिमालय सा विस्तार
ऊंचाई का जिसके हो न कोई आर-पार
उमड़ता है जब क्षितिज में मानवता का सैलाब
उगता है दुनियां में एक नया आफताब
जब तलक रहेगी दुनिया की जनसंख्या बस एक
रुकेगा नहीं मानवता के विरुद्ध जारी फरेब
आइए बनाते हैं एक-एक मिलाकर अनेक को
अंध आस्था की जगह लाते हैं विवेक को
चलेंगे सब हम जब मिलकर साथ साथ
फरेबों की सारी दुनिया हो जायेगी अनाथ
आइए लगाते हैं मिलकर नारा-ए-इंक़िलाब
निजी प्यार भी होगा उसी में आबाद
(बस ऐसे ही तफरी में)
(ईमिः03.06.2014)
छोटा सा टीला ही जिसमें पहाड़ की चोटी होे
दो इस दुनिया को हिमालय सा विस्तार
ऊंचाई का जिसके हो न कोई आर-पार
उमड़ता है जब क्षितिज में मानवता का सैलाब
उगता है दुनियां में एक नया आफताब
जब तलक रहेगी दुनिया की जनसंख्या बस एक
रुकेगा नहीं मानवता के विरुद्ध जारी फरेब
आइए बनाते हैं एक-एक मिलाकर अनेक को
अंध आस्था की जगह लाते हैं विवेक को
चलेंगे सब हम जब मिलकर साथ साथ
फरेबों की सारी दुनिया हो जायेगी अनाथ
आइए लगाते हैं मिलकर नारा-ए-इंक़िलाब
निजी प्यार भी होगा उसी में आबाद
(बस ऐसे ही तफरी में)
(ईमिः03.06.2014)
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