Tuesday, June 3, 2014

उजाड़ दो यादों की दुनिया जो इतनी छोटी हेो

उजाड़ दो यादों की दुनिया जो इतनी छोटी हो
छोटा सा टीला ही जिसमें पहाड़ की चोटी होे
दो इस दुनिया को हिमालय  सा विस्तार
ऊंचाई का जिसके हो न कोई आर-पार
उमड़ता है जब क्षितिज में मानवता का सैलाब
उगता है दुनियां में एक नया आफताब
जब तलक रहेगी दुनिया की जनसंख्या बस एक
रुकेगा नहीं मानवता के विरुद्ध जारी फरेब
आइए बनाते हैं एक-एक मिलाकर अनेक को
अंध आस्था की जगह लाते हैं विवेक को
चलेंगे सब हम जब मिलकर साथ साथ
फरेबों की सारी दुनिया हो जायेगी अनाथ
आइए लगाते हैं मिलकर नारा-ए-इंक़िलाब
निजी प्यार भी होगा उसी में आबाद
(बस ऐसे ही तफरी में)
(ईमिः03.06.2014)

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