भारत में भगवानों की भीड़ देख मैं भी कभी सोचता हूं कि सांई बाबा या रजनीश की तरह भगवान ही क्यों न बन जाऊं. लेकिन ............ आप लोग मेरे बारे में भी यही सब कहेंगे जे इन बेचारे शंकरों और सांइयों के बारे में कहते हैं और फरेब भूलकर कहीं ऐतिहासिक भौतिकवाद पर प्रवचन करने लगूं तथा बाकी भगवानों के साथ अपनी भी पोल-पट्टी न खोल दूं और भक्त गण नक्सल घुसपैठिया समझ लें, इसीलिए विचार बदल देता हूं. वैसे मेरे दादा जी ने भगवानत्व की संभावनाएं देखकर ही मेरा नाम ईश रखा होगा, लेकिन ऊ ईश ही कैसा जो किसी और ईश को घास डाले और ई इशवा त 17 साल तक पहुंचत-पहुंचत नास्तिक बनकर दादा जी की आशाओं पर पानी फेर दिया. लेकिन अगर दुनियां की जनता ने आग्रह किया तो मैं अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकता हूं.
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गुरु नहीं हेरंब भाई भगवान, भगवान को चढ़ावा ज्यादा मिलेगा, उतना मिलेगा कि अपन के लिए 10 फीसदी भी काफी रहेगा, बाकी आप अन्य चेलों के साथ बांट लीजिएगा. लेकिन भगहवान न बनने का फैसला बदलने का बहाना ही नहीं मिल रहा, जनता सो पॉपुलर डिमांड ही नहीं आ रही है, लगता है जनता में घुसपऐठ करना पड़ेगा जैसे दिवि का कुलपति शिक्षकों में घुसपैठ करके अपनी बर्खास्तगी के विरुद्ध अभियान चलवा रहा है
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