Arun Kumar Singh दूसरे प्रश्न यानि रेल के निजीकरण की संभावना नहीं है. देखते रहिए आगे-आगे. शपथ लेने के पहले ही सबसे मलाईदार सेक्टर-- रक्षा-- को विदेशी निवेश के हवाले करने की बात कर दी, रेल के घाटे का शगूफा इसीलिए छोड़ा जा रहा है कि उसका निजीकरण किया जा सके. कैटरिंग के निजाकरण से प्लेटफॉर्म से सेरे रेड़ी वालों को ठेकेदार के दबाव में जबरन भगा दिया गया. यात्री रेल का मंहगा-घटिया खाना खाने को अभिशप्त हैं और गरीब आदमी मुंह बांधे यात्रा करता है, देश भर में लाखों का रोजगार छिनना अलग. अभी से रेल के निजीकरण के विरोध के लिए कमर कस लीजिए क्योंकि जिन थैलीशाहों ने मोदी के छविनिर्माण और उड़नखटोले में घुमाकर बकवास सुनवाने में जारों करोड़ खर्च किया है उन्हें सूद समेत वसूलना ङी तो है. गुजरात तो पहले ही लुटा चुके हैं अब रेल से शुरू करके देश बेचने की बारी है. अभी तो रेल किराये और डीजल मूल्यवृद्धि से होने वाली मंहगाई का झटका झेलिए. हम आप तो झेल ले जायेंगे लेकिन मोंटेक की गरीबी रेखा का क्या होगा.
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