Wednesday, June 18, 2014

शिक्षा और ज्ञान 12

http://ishmishra.blogspot.com/2014/06/blog-post_18.html

इस कविता की पोस्ट पर एक फेसबुक मित्र ने 3 सवाल (असंबद्ध) और "एक वात और" पूछा. उनका जवाबः
T.n. Tiwari सादर प्रणाम. पहली बात तो आप तथ्य-तर्कों पर आधारित विवेक सम्मत विमर्श को धता बताते हुए विरासत में मिली, कहा-सुनी/कानाफूसी/गप-शप पर आधारित अपने विरासती ज्ञान को अक्ष्क्षुण रखते हुए उसे तर्क-तथ्यों की कसौटी पर कसने का कष्ट नहीं उठाना चाहते. दूसरी बात अपनी विषयांतर की आदत के अनुसार, आपके कोेई भी सवाल इस पोस्ट के मुद्दों पर नहीं हैं. आप उन परीक्षार्थियों की याद दिललाते हैं जो सवाल कुछ भी हो जो रटकर आये हैं वही लिखेंगे. फिर भी मैं आपके सवालों और  "एक बात और "  के जवाब अपनी सामर्थ्य में देने का प्रयास करूंगा. 1. "प्रकृति ने सभी जीवों को बराबर शक्ति/सामर्थ्य क्यों नहीं दी?"  2.  "क्या सभी मनुष्यों का शक्ति/सामर्थ्य में बराबर होना वास्तव में संभव है?" इन दोनों सवालों का जवाब एक साथः
 प्रकृति ने सभी जीवों को भिन्न बनाया है, असमान नहीं. हाथी जैसा शक्तिशाली जानवर अपने 1फीसदी वजन से भी कम एक णनुष्य के नियंत्रण में आ जाता है लेकिन खरहा जैसा छोटा जानवर नहीं. फिद्दी सी मधुमक्खी छत्तो बुनने के शिल्प में काबिल-से-काबिल बुनकर को पीछे छोड़ देती है. रटा-रटाया जुमला है कि सभी अंगुलियां बराबर नहीं होतीं, लेकिन द्रोणाचार्य को एकतलब्य की लंबाई में सबसे छोटी उंगली, अंगूठा ही सबसे खतरनाक लगा. शरीर के वजन को अगर असमानता का मानदंड माना जाय तो दुनिया के लगभग सारे पुरुष मुझसे श्रेष्ठतर होंगे. मैं प्रोफेसर हूं आप बड़े बाबू, दोनों 2 अलग किस्म के काम करते हैं असमान नहीं. असमानता के सिद्धांतकार औरक उनकेभ क्त भिन्नताओं को पहले असमानता के रूप में परिभाषित करते हैं और गोल-मटोल तर्क का इस्तेमाल करते हुए, उसी परिभाषा से असमानता को प्रमाणित करते हैं.
"३. क्या बराबरी का फलसफा किसी हसीं(?) ख्वाब की तरह ही नहीं ?" जब तक कोई विचार-कार्यक्रम फलीभूत नहीं होता तब तक वह हसीं(या कुछ के लिए भयावह) ख़्वाब (यूटोपिया) लगता है. दलित मजदूरों की थाली-लोटे में 2फीट ऊपर से रोटी-पानी डालने वाले हमारे-आपके बाप-दादा को किसी ब्राह्मण द्वारा कैमरे के सामने एक दलित महिला का चरणस्पर्श करके मंत्रि पद की सपथ लेने की बात यूटोपिया लगती. वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि घरों की चारदीवारी में कैद रहने के बाद कुसी "कुलीन खूंटे" में खुशी खुशी बंधने वाली उनके खावदान की लड़कियां हॉ़ट पैंट पहन कर मोटर साइकिल चलायेंगी या किसी गैर ब्रह्मण से शादी कर लेंगी. 1950-60 के दशक तक अमेरिका में अश्वेत गुलामों के किसी वंशज का अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की बात यूटोपिया लगती. दरअसल लोगों की सामाजिक चेतना सफल वैचारिक विद्रोह तक शासक वर्गों द्वारा पोषित युगचेतना की चेरी बना रहती है, और लोग समट से आगे सोच नहीं पाते. हमारा मक्सद जनविरोधी, प्रतिगामी युगचेतना का वर्चस्व समाप्त कर जनवादी सामाजिक चेतना का निर्माण करना है.
"एक बात और सर, मुस्लिम भाइयों के प्रति आपका क्या दृष्टिकोण है, विशेषकर उनकी उत्पादन प्रवृत्ति को लेकर " सभी संघी तोते की तरह यही बात दशकों से रटते आ रहे हैं. आप कितने भाई-बहन हैं? 4-5 होंगे! हम कुल 9 भाई-बहन थे. मेरे गांव में मेरे हमउम्र गांव में रहने वाले जितने लोग हैं सबके लगभग, औसतन आधा दर्जन बच्चे हैं. मेरा अपना, मुझसे छोटा चचेरा भाई 4 बेटियों और 2 बेटों का बाप है. जाहिर है, बेटियां बड़ी हैं. मेरे बहुत से मुस्लिम परिचित हैं(कई इलाहाबाद में भी) जिनकी एक ही औलाद है. कहने का मतलब मित्र यह कि सांप्रदायिकता (या धर्मनिरपेक्षता) जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना पर आधारित कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा है जिसे हम रोजमर्रा के व्यवहार से पोषित-परिवर्धित करते हैं. उसी तरह परिवारनियोजन की चेतना धार्मिक प्रवृत्ति न होकर आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक संदर्भ और समाजीकरण का परिणाम है. मित्र, आग्रह गै कि विरासती नैतिकता को विवेकसम्मत नैतिकता से प्रतिस्थापित करें.

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