नेता की भितरघात तो समझ आती है
खुली खुशामद करे, ये तो हद है
बदनामी छिपाना तो समझ आता है
उसका डंका कोई पीटे ये तो हद है
शिक्षक का न पढ़ाना समझ आता है
कुज्ञान की फसल उगाये ये तो हद है
मालिक की वफादारी तो समझ आती है
अपना ही गांव जला दे, ये तो हद है
मालिक की मुसीबत से मायूस होना समझ आता है
उसके लिए जान दे दे ये तो हद है
ख़ुदगर्जी में सर नवाना तो समझ आता है
कोई साष्टांग करे ये तो हद है
(ईमिः24.06.2014)
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