Thursday, June 12, 2014

नारी विमर्श 3

 यह मित्र सुमंत भट्टाचार्य की एक पोस्ट पर कमेंट है जिसमें उन्होने बलात्कार पर विमर्श में जाति-पांत के विचारों से मुक्त ऱकने की हिमायत की है और यह कि गुजरात की घटनाएं इतिहास हन चपकी हैं.

मैं पंकज की बात से सहमत हूं कि अतीत की हर घटना इतिहास नहीं होती. भारतीय समाज भारतीय राज्य से अधिक प्रतिक्रियावादी है. राज्य संविधान के जरिए नारी को (पुरुषों के सापेक्ष) समानता का अधिकार प्रदान करता है लेकिन समाज तमाम रीतियों और वर्जनाओं के बहाने इस मौलिक अधिकार को बाधित करता है लेकिन नारी प्रज्ञा और दावेदारी  का जो दरिया झूम के उट्ठा है वह अब तिनकों से न टाला जाएगा. तुम पहले भी यह बात उठा चुके हो कि नारियों पर अत्याचार पर विमर्श में मजहब और जाति की टर्चा नहीं होनी चाहिए इससे नारी शसक्तीकरण बाधित होगा...... मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं की सभी स्त्रियां मर्दवादी विकृतियों, सिक्सुअल्टी की समझ और वैचारिक वर्चस्व की शिकार हैं, जातीय-सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार के मामलों वे दुहरी शिकार हैं. उनका बलात्कार सिर्फ औरत होने के नाते नहीं होता बल्कि खास जाति-समुदाय की औरत होने के नाते होता है. हलात्कार का सिक्सुअल्टी से कोई तल्लुक नहीं है बल्कि सेक्सुअल्टी की मर्दवादी समझ से है जिसे पूंजीवादी वैचारिक तंत्र तमाम तरीकों से औरत को बेशकीमती माल चित्रित करता है. पूंजीवादी दोगलेपन के चलते यह समंती-पोंगापंथ से निर्णायक जंग की बजाय टैसिट एलायंस कर लेता है जिस तरह आज पूरी दुनिया में भूमंडलीय पूंजी दक्षिणपंथी उग्रवाद का पोषण कर रही है क्योंकि इसका विकास यानि धरती के संसाधनों की बेरोक लूट, संकीर्णतावादी अधिनायकवाद में ज्यादा सहज है. भूमंडलीय पूंजी का मोदी प्रेम इसी प्रमेय का उपप्रमेय है. पूंजीवादी उपभोक्ता संस्कृति वर्णाश्रमी मर्दवाद के साथ टैसिट एलायंस करके औरत को माल बताने में सारा दम लगा दे रहा है. लेकिन इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता. नारीवादी चेतना-प्रज्ञा-दावेदारी का परचम ऊंचा ही होता जायेगा और उसी परचम तले वर्णाश्रमी-पूंजीवादी मर्दवाद के विरद्ध संघर्ष ही नारियों को जाति-धर्म से मुक्त कर सार्वभौमिक नारी चेतना की रूपरेखा गढ़ेगा. यह महज संयोग नहीं हो सकता कि यौन-हिंसा की शिकार ज्यादातर लड़कियां-महिलाएं दलित-अल्पसंख्यक-आदिवासी एवं अन्य वंचित वर्गों की हैं. गुजरात में हुए सामूहिक बलात्कार इसलिए अलग हैं कि वे राज्य प्रयोजित थे और प्रायोजक खलनायक की जगह नायक बनकर देश का मुखिया बन गया.इस प्रतिगामी युगचेतना को रोकना है.

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