असद जफर ने अक पोस्ट में जानना चाहा कि क्या जमीन और जमीर बेच कर ही ज्यादा पैसा कमाया जा सकता है. उस पर कमेंटः
ज़मीर का पता नहीं कि सबके पास होती है कि नहीं और कई खरीददार खरीदने के बाद पछताते होंगे. कई लोग तो एक ही माल पैकिंग बदल-बदल कर कई बार बेचते हैं. जहां तक जमीन का सवाल है तो जमीन तो जब से राज-काज का निज़ाम चालू हुआ तभी से शासकों की ही होती है. आज दुनिया पर टाटा-अंबानी-अडानी-एनरॉन-- वालमार्ट-...... के रूपों में दिखती भूमंडलीय पूंजी का शासन है. कुछ लोग शासक की जमीनों पर काबिज है,. कुछ तो अनादिकाल से. दाम लेकर जो किसान-आदिवासी राजा की जमीन से अपना शताब्दियों पुराना कब्जा खत्म कर स्वेच्छा से बेघर हो गये वे शहरों में निर्माण मजदूर या घरेलू नौकर-चाकर बनकर देश-सेवा कर रहे हैं और कलिंगनगर-जगसिंहपुर-नियामगिरि-नारायण पटना-करछना-............ के किसान-आदिवासियों की तरह जो जमीन-मोह से बंध कर बेघर होने से इंकार करते हैं वे पुलिस दमन के आतंक में जीते हैं. राष्ट्र के विकास के लिए किसी-न-किसी को तो कुर्बानी देनी ही पड़ती है. सभ्यता के इतिहास की गौरवशाली परंपरा यही है कि कुर्बानी की भूमिका हमेशा महकूम-ओ-मजलूम की रही है, चाहे वह मजदूर-किसान हो या फिर सिपाही. भूमिकायें बदलने का वक़्त टलता जा रहा है.
ज़मीर का पता नहीं कि सबके पास होती है कि नहीं और कई खरीददार खरीदने के बाद पछताते होंगे. कई लोग तो एक ही माल पैकिंग बदल-बदल कर कई बार बेचते हैं. जहां तक जमीन का सवाल है तो जमीन तो जब से राज-काज का निज़ाम चालू हुआ तभी से शासकों की ही होती है. आज दुनिया पर टाटा-अंबानी-अडानी-एनरॉन-- वालमार्ट-...... के रूपों में दिखती भूमंडलीय पूंजी का शासन है. कुछ लोग शासक की जमीनों पर काबिज है,. कुछ तो अनादिकाल से. दाम लेकर जो किसान-आदिवासी राजा की जमीन से अपना शताब्दियों पुराना कब्जा खत्म कर स्वेच्छा से बेघर हो गये वे शहरों में निर्माण मजदूर या घरेलू नौकर-चाकर बनकर देश-सेवा कर रहे हैं और कलिंगनगर-जगसिंहपुर-नियामगिरि-नारायण पटना-करछना-............ के किसान-आदिवासियों की तरह जो जमीन-मोह से बंध कर बेघर होने से इंकार करते हैं वे पुलिस दमन के आतंक में जीते हैं. राष्ट्र के विकास के लिए किसी-न-किसी को तो कुर्बानी देनी ही पड़ती है. सभ्यता के इतिहास की गौरवशाली परंपरा यही है कि कुर्बानी की भूमिका हमेशा महकूम-ओ-मजलूम की रही है, चाहे वह मजदूर-किसान हो या फिर सिपाही. भूमिकायें बदलने का वक़्त टलता जा रहा है.
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