Wednesday, June 4, 2014

जो देखता सुनता महसूसता हूं,

जो देखता सुनता महसूसता हूं,
 शब्दों में उसे ही पिरोता हूं
करता नहीं अमूर्तीकरण अनुभवातीत इकाई का
सत्यापन को ही मानता हूं आधार सच्चाई का
मक्सद है तोड़ना मिथ्याचेतना का जटिल जाल
आध्यात्मिकता का आवरण है शासकों की चाल
है वैसे तो यह बहुत कठिन वैचारिक काम
आसानियों को दे सकता है कोई भी अंज़ाम
(ईमिः 05.04.2014)

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