इस संकल्पशील तस्वीर पर
लिखनी ही पड़ेगी अब तो एक उड़ती हुई कविता
टिका नज़रें सुदूर मंजिल पर
निकली हो जैसे चीर कर घनी-अंधेरी सविता
लिखी है बुलंद इरादों की इबारत चेहरे पर
खत्म हो गयी हो मानो वर्जनाओं की दुविधा।
अभी फिलहाल शब्द-जाल इतना ही
तस्वीर को शब्दों में पिरोना है मुश्किल भी
(ईमिः16.06.2014)
लिखनी ही पड़ेगी अब तो एक उड़ती हुई कविता
टिका नज़रें सुदूर मंजिल पर
निकली हो जैसे चीर कर घनी-अंधेरी सविता
लिखी है बुलंद इरादों की इबारत चेहरे पर
खत्म हो गयी हो मानो वर्जनाओं की दुविधा।
अभी फिलहाल शब्द-जाल इतना ही
तस्वीर को शब्दों में पिरोना है मुश्किल भी
(ईमिः16.06.2014)
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