Friday, June 20, 2014

प्रोफेसरों की जागीरदारी

This poem is a comment on a DU group:

इस विद्वतमंच पर भाषा का ऐसा भदेश?
इस विद्वतमंच पर भाषा का ऐसा भदेश?
लगता है हो जैसे कोई अादिम प्रदेश
यह प्रोफेसरों की जागीरदारी का नतीजा है
कोई बेटा-बेटी तो कोई गोद लिया भतीजा है
धर्मपिताओं की है यहां एक परंपरा महान
धर्मपुत्र-पुत्रियों में फूंकता जो अनूठा ज्ञान
डिग्री मिलते ही बन जाते हैं अद्भुत विद्वान
लेता है धर्मपिता इस दुर्घटना का संज्ञान
करता है अगली पीढ़ी के ज्ञान का निदान
धर्मपुत्र होत हैं बाहुबल में भी कम नहीं
कहते रहिए लंपट इन्हें कोई ग़म नहीं.
(ईमिः20.06.2014)

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